पजवोक नामक अफगान समाचार पोर्टल के पत्रकार अब्दुल हनान मोहम्मदी को तालिबान प्रशासन ने बीते शुक्रवार (सितम्बर 30, 2022) को रिहा कर दिया है। पत्रकार मोहम्मदी को तालिबान की ख़ुफ़िया एजेंसी ने जून, 2022 में हिरासत में लिया था।
पत्रकार मोहम्मदी फेडरेशन ऑफ इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (FIJA) के प्रान्तीय उप-प्रमुख थे। उन्हें तालिबान की खुफिया एजेंसियों ने उस समय गिरफ्तार किया था, जब वह तालिबान की असलियत बताने वाली एक जमीनी रिपोर्ट कवर कर रहे थे।
पजवोक अफगान न्यूज के अनुसार, “अब्दुल हनान मोहम्मदी ने पजवोक अफगान न्यूज के साथ टेलीफोन पर बातचीत की और अपनी रिहाई की बात कही। FIJA ने भी बयान जारी कर, मोहम्मदी की रिहाई की पुष्टि की है।”
मोहम्मदी के परिवार ने भी मीडिया को तालिबान की हिरासत से उनकी रिहाई की पुष्टि की है। उनके परिवार का कहना था कि मोहम्मद को शुक्रवार की दोपहर (30 सितंबर, 2022) को तालिबान ने रिहा कर दिया था और वह अब अपने परिवार के पास लौट आया है।
जून 2022 में, अफगानिस्तान के कपिसा प्रान्त में अफगानिस्तान इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (AIJA) ने पुष्टि की थी कि अब्दुल हनान मोहम्मदी, एक स्थानीय पत्रकार और एआईजेए के प्रान्तीय उप-प्रमुख अपने एक दोस्त के साथ कपिसा के हेसा अवल जिले से गायब हो गए थे।
तालिबान ने पत्रकारों पर कसा शिकंजा
तालिबान शासित अफगानिस्तान में पत्रकारों की स्थिति चिन्ताजनक है। तालिबान ने सत्ता में आते ही प्रेस पर सख्त प्रतिबन्ध लगाए हैं। मसलन, तालिबान की अनुमति के बिना पत्रकारों को तस्वीरें लेने या किसी भी व्यक्ति का साक्षात्कार करने की अनुमति नहीं है। इन नियमों का उल्लंघन करने पर सीधे गिरफ्तारी हो सकती है। यहाँ तक कि बिना जाँच के कारावास और फिर जेल में विभिन्न तरह की यातनाएँ भी दी जाती हैं।
सितम्बर, 2022 में तालिबान प्रशासन ने टोलो न्यूज के दो प्रमुख पत्रकारों जिनमें खपलवाक सपई और महबूब स्तानकजई को काबुल में गिरफ्तार किया था।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, तालिबान प्रशासन ने एक वर्ष के भीतर, अफगानिस्तान में 39.59% मीडिया आउटलेट बन्द हो चुके हैं। जबकि, 59.86% पत्रकारों ने या तो नौकरी छोड़ दी या फिर वे लापता हो गए। इसमें भी सबसे अधिक सँख्या महिलाओं की है।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट को देखने पर पता चलता है कि 15 अगस्त 2021 तक यानी तालिबान के आने से पहले तक अफगानिस्तान में 11,857 पत्रकार सक्रिय थे। इनमें से अब केवल 4,759 पत्रकार ही सक्रिय हैं। इसमें भी महिला पत्रकार सबसे अधिक प्रभावित हुई हैं। आँकड़ो की मानें तो कुल सक्रिय महिला पत्रकारों में से 76.19% ने अपनी नौकरी छोड़ दी है।
यह तालिबान शासन के प्रेस की स्वतंत्रता पर लगाए सख्त प्रतिबन्ध का परिणाम है। तालिबान प्रशासन ने पत्रकारों को तालिबान की इच्छा के विरुद्ध रिपोर्ट करने पर परिणाम भुगतने की सरेआम चेतावनी दी है।
सोशल मीडिया और सूचना के इस दौर में प्रेस की स्वतंत्रता बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह दौर सूचना वारफेयर का है। तालिबान, तानाशाही शासन का एक रूप है। बावजूद, समाचार, सूचना, विचारों की स्वतंत्रता किसी भी समाज के विकास के लिए बेहद आवश्यक होता है।
ऐसे में तालिबान प्रशासन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगे पहरे को हटाने के लिए तत्काल उचित कदम उठाने की आवश्यकता है। साथ ही, अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं को भी अफगानिस्तान में प्रेस की स्वतंत्रता की बिगड़ती स्थिति से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत है।