एक पोलिश फिल्म है, इंग्लिश में इसका नाम ‘द हेटर’ है। यह फिल्म ‘अ मस्ट वॉच’ है, PR या कम्युनिकेशन के हरेक विद्यार्थी के लिए, खासकर जो 2022 में काम कर रहा है।
फिल्म हमेशा की तरह वामपंथी बेंड (अंग्रेजी वाला बेंड, और ध्यान रहे मैं रुझान नहीं कह रहा हूं) वाली है, जहां दक्षिणपंथ एक विलेन, एक खलनायक की तरह पेश किया गया है। बात वैसे यहाँ इस बात के लिए नहीं की है, बल्कि इसलिए की है कि इस फिल्म में मीडिया, पॉलिटिक्स और बाकी समाज का जो रिश्ता दिखाया गया है, वह जैसे आज हमारे सामने है।
ऐसा नहीं कि पत्रकारिता और राजनीति का घालमेल कुछ नया है, बल्कि यह तो पुराना रिश्ता है। हाँ, पहले इतनी परदेदारी जरूर रहती थी कि राजीव शुक्ल जब राजनीति में प्रवेश करते थे, तो मीडिया का मुखौटा उतार देते थे। संजय बारू अगर पीएम के सलाहकार बनते थे, तो वह फिर सलाहकार ही रहते थे। आज का यह दौर गजब खतरनाक है कि पार्टी पदाधिकारी को ही सीधा मीडिया में शामिल करवा दिया गया है। यह एक नयी लकीर है- बेशर्मी की।
फिल्में भी जिंदगी में कब प्रवेश कर जाती हैं, पता नहीं चलता
यह भूमिका थोड़ी बड़ी हो गई, पर अब आपको बात समझने में आसानी हो जाएगी। अभी AAP का इंडिया टुडे ग्रुप से क्या रिश्ता है, यह समझने के लिए हम आपको आपके हाल पर छोड़ देते हैं। बस, कुछ तथ्य दे डालते हैं-
- एक लड़की नूपुर पटेल अभी लल्लनटॉप के लिए गुजरात में वीडियो बना रही है। वह लल्लनटॉप की गुजरात हेड है।
- वह पहले AAP के लिए वीडियो बनाती थी।
- AAP की वेबसाइट अगर देखेंगे तो पुराने पेज में इस लड़की को इन्होंने नेशनल जॉइंट सेक्रेटरी की पोस्ट ऑफर की हुई है।
- अब वह लड़की नूपुर पटेल अपने पुराने पोस्ट और ट्वीट डिलीट कर रही है। अगर आप इस स्टोरी के फीचर इमेज देखेंगे तो उस समय किए गए ट्वीट के स्क्रीन शॉट और बाकी दिए जा रहे हैं।
- आपको आशुतोष याद हैं? वह भी पूर्व पत्रकार थे, फिर फुलटाइमर बने AAP के। बाद में, जब केजरीवाल से झंझट हुआ तो पार्टी छोड़ी और फिलहाल सत्यहिन्दी नामक एक वेबसाइट चला रहे हैं। आपको याद दिला दें कि उनके समय में लगभग 300 पत्रकारों की नौकरी गई थी, लेकिन बंदे के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई।
- क्रांतिकारी, बहुत क्रांतिकारी पुण्य प्रसून वाजपेयी याद हैं? पूरा इंटरव्यू ही भाई लोगों ने फिक्स कर लिया था। क्या ठीक रहेगा पूछना और कैसे पूछना है, ये पूरा फिक्स था मामला।
- इस बार बस अंतर इतना ही है कि एक पूर्णकालीन कार्यकर्ता को ही मीडिया में घुसा दिया।
AAP तो ऐसे ही हैं
दिक्कत यह नहीं है कि AAP के पूर्व कार्यकर्ता को अरुण पुरी के ग्रुप ने क्यों नौकरी दी? दिक्कत यह है कि सर्मन ऑन द माउंट देने वाले लोग जब खुद की बारी आती है तो इतनी बेशर्मी से बेअदबी कैसे कर पाते हैं? यहाँ बात फिर से उसी फिल्म – द हेटर की।
फिल्म में एक बालक है (ब्लडी फ*ग मिलेनियल, ये फिल्म का डायलॉग है, जिससे मैं पूरी तरह सहमत हूं) जो Plagiarism के लिए यूनिवर्सिटी से निकाल दिया जाता है और वह सोशल मीडिया के जरिए अपनी यात्रा शुरू करता है।
वह सोशल मीडिया का एक्सपर्ट है, मने, ट्रोल करना, फेक आइडी के सहारे हंगामा करना, सारे कानूनों को उनकी अमुक जगह में ठेल देनेवाला, अपने गॉडफादर को धोखा देना, जो परिवार उसकी शिक्षा को स्पांसर कर रहा है, उसकी बेटी को फांसना, उसके बाद साइबर क्राइम, एक के बाद एक यह मिलेनियल कमाल करता जाता है।

केजरीवाल का मीडिया से रिश्ता क्या कहलाता है
यह आप सभी पाठकों के ऊपर हम छोड़ जाते हैं कि आप इस पर क्या सोचते हैं। वैसे भी, पंजाब के मुख्यमंत्री हों या दिल्ली के मुख्यमंत्री, इनके हाथ में भले आइ-फोन हो, लेकिन उनके पास पैसे नहीं होते कि वे कॉल कर सकें।
और अंत में उसी फिल्म का एक डायलॉग, Tribalism, nationalism, authoritarianism are dangerous as hell.
नूपुर अग्रवाल की नियुक्ति और उस फिल्म को अगर एक साथ देखेंगे तो आप कई चीजें साध सकेंगे।
एक दृश्य है, जहां फिल्म के मेयर उम्मीदवार (हमेशा की तरह होमोसेक्सुअल वामपंथी) की पक्ष में जुटी भीड़ के सामने दक्षिणपंथी भीड़ आ जाती है, जो हमेशा की तरह ह्वाइट यूरोपियंस मात्र के लिए लड़ती है (और जिसे भारत में सनातनियों के लिए पेश कर दिया जाता है, जबकि यहां की लड़ाई कुछ और ही है) और तब नारीवादी नायिका कहती है, इट सक्स।
सचमुच, इट सक्स।
मतलब, पूरे विश्व में आज की तारीख में भी यह कैसे संभव हो सकता है, जबकि आधा विश्व आज दक्षिणपंथ को समर्थन दे रहा है।
यह इसलिए हो रहा है, क्योंकि आप यूरोप की आंख से भारत को देख रहे हैं, चीन ने खुद को बंद कर रखा है, इसलिए आपकी हिम्मत नहीं होती, लेकिन भारत अब बदल रहा है और आप यह देख ही नहीं पा रहे हैं।