अक्टूबर माह में वैश्विक स्तर पर सुर्खियां बटोरने वाले गाम्बिया कफ सिरप विवाद में नया मोड़ आया है। पिछले माह 5 अक्टूबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुखिया टेड्रोस एडनॉम गेब्रियेसस ने एक प्रेस वार्ता कर भारत में निर्मित 4 कफ सिरप को गाम्बिया में रहस्यमयी तरीके से हुई बच्चों की दुखद मृत्यु से जुड़े होने की आशंका जताई थी।
"The four medicines are cough and cold syrups produced by Maiden Pharmaceuticals Limited, in India. WHO is conducting further investigation with the company and regulatory authorities in India"-@DrTedros https://t.co/PceTWc836t
— World Health Organization (WHO) (@WHO) October 5, 2022
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक मेडिकल अलर्ट जारी कर दवाओं के नाम, निर्माता, बैच संख्या आदि को भी प्रदर्शित किया था और कहा था कि इन सिरप में एक रसायन की मात्रा अधिक होने के कारण यह विषाक्त हैं। हालाँकि, लिखित प्रेस रिलीज में कहीं भी यह नहीं कहा गया था कि दवाएं सीधे तौर पर गाम्बिया में हुई मौतों से जुड़ी हुई हैं।
‘द पैंफलेट’ ने मीडिया के झूठ का किया था पर्दाफ़ाश
द पैंफलेट ने इस पूरी घटना पर विस्तार से जानकारी सामने रखी थी और बताया था कि किस तरह से प्रचारित किया जा रहा है कि यह भारतीय कफ सिरप ही बच्चों की मृत्यु का कारण हैं। ग़ौरतलब है कि अभी तक किसी भी दावे में यह तथ्य सामने नहीं आ सका है। इसके लिए ‘द पैम्फलेट’ ने नई दिल्ली स्थित गाम्बिया के दूतावास से भी बात भी की थी।
अब इस घटना में यह तथ्य सामने आया है कि अधिकांश बच्चे, जिनकी बाढ़ के बाद मृत्यु हुई, उन्होंने किसी प्रकार की दवाई ली ही नहीं थी। गाम्बिया की दवा नियामक एजेंसी मेडिसिन कंट्रोल अथॉरिटी के एक अधिकारी ने यह जानकारी अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सामने रखी है।
क्या है पूरा मामला?
यह पूरा प्रकरण पश्चिम अफ्रीका में स्थित देश गाम्बिया में इस वर्ष के जून-जुलाई माह से लगातार जारी छोटे बच्चों की मौत से जुड़ा हुआ है। गाम्बिया में इस वर्ष के जून-जुलाई माह में भीषण बाढ़ आई थी, जिसके पश्चात बच्चों की मृत्यु का सिलसिला सामने आया। सितम्बर माह आते-आते मौत का यह आंकड़ा बढ़ कर लगभग 30 हो गया, जिससे गाम्बिया की सरकार पर दबाव पड़ा।
गाम्बिया की स्वास्थ्य संस्थाओं और दवा नियामक एजेंसियों ने अपनी शुरूआती जांच में यह पाया कि बच्चों की मौत के पीछे पैरासिटामोल सिरप एक कारण हो सकता है।
इन सिरप के सेवन से एक बीमारी एक्यूट किडनी इंजरी पनपती है जिससे बच्चों में मौतों का सिलसिला लगातार जारी है। इसके अतिरिक्त, इन मौतों के पीछे एक बैक्टीरिया ई-कोलाई का भी हाथ बताया गया। सितम्बर माह में ही गाम्बिया ने सभी प्रकार की पैरासिटामॉल सिरप पर रोक लगाकर उन्हें जब्त करने का आदेश दिया था।
इसके पश्चात अक्टूबर माह में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जब्त की गई सिरप में से 4 सिरप को विषाक्त पाया, यह सिरप भारत में निर्मित थे। इसके पश्चात विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख टेड्रोस एडनॉम गेब्रियेसस ने इन सिरप को बच्चों की मौत के पीछे का संभावित कारण बताया।
यह बात और है कि किसी भी जांच यह सिद्ध नहीं हो सका था कि सिरप ही बच्चों के मौत का कारण हैं। अक्टूबर माह में ही गाम्बिया के राष्ट्रपति ने प्रेस कॉन्फ्रेस करके मौतों पर दुःख प्रकट किया और कहा कि बैक्टीरिया ही इन मौतों के पीछे बड़ा कारण है। वहीं दवा निर्माता मेडन फार्म ने भी अपनी दवाओं के विषाक्त होने से इंकार किया था।
मीडिया ने बिना जाने परखे चलाई खबरें
WHO के द्वारा यह जानकारी दिए जाने पर कि दिल्ली स्थित मेडन फार्मा नाम की कम्पनी के द्वारा निर्मित सिरप विषाक्त पाई गई हैं और मौतों के पीछे यह एक कारण हो सकती हैं। भारत एवं पश्चिम के मीडिया ने तुरंत बिना जांचे परखे सीधे सिरप को ही दोषी मानते हुए भारत के फार्म उद्योग के खिलाफ दुष्प्रचार चालू कर दिया।
झूठी खबरें चलाने के आरोपों में माफ़ी मांगते हुए फिर रहे प्रोपगेंडा पोर्टल दी वायर ने अपनी खबर में सीधे सीधे भारत निर्मित सिरप को दोषी ठहराया जिसका अनुसरण बाकी मीडिया विशेष कर बीबीसी, इंडिया टुडे आदि ने किया। भारत का फार्मा उद्योग इससे पहले भी दुष्प्रचार का शिकार रहा है।
सामने आए WHO के दोहरे मापदंड
इस पूरी घटना से विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO के दोहरे मापदंड और भारत के प्रति पूर्वाग्रह भी सामने आ गए। गाम्बिया की तरह ही एक घटना अक्टूबर माह में दक्षिण पूर्व के देश इंडोनेशिया में सामने आई जहाँ इसी बीमारी एक्यूट किडनी इंजरी से अब तक लगभग 150 बच्चों की मौत हो चुकी है।
Indonesia's food and drugs agency has said it will pursue criminal action against the two pharmaceutical firms following the deaths of over 100 kids from acute kidney injury (AKI)https://t.co/47HrfnRr3V
— WION (@WIONews) October 25, 2022
इंडोनेशिया के स्थानीय प्रशासन ने घटना पर कारवाई करते हुए देश में कई सिरप पर बैन लगा दिया है और इस बीमारी के फैलने के पीछे इंडोनेशिया में ही निर्मित 5 सिरप को दोषी करार देते हुए उन पर कार्रवाई की है। ध्यान देने वाली बात यह यह है कि दोनों घटनाओं के परिणाम एक जैसे दुखद हैं परन्तु इन दोनों घटनाओं पर WHO का रवैया बिलकुल अलग है।
जहाँ भारत में निर्मित सिरप के संदेह में आने की बात थी वहां WHO ने तेजी दिखाते हुए भारत में बने सिरप का नाम, निर्माता एवं सभी तरह की जानकारियां सार्वजनिक करते हुए अलर्ट जारी किया था वहीं इंडोनेशिया की घटना में विषाक्त पाए गए सिरप को लेकर कोई भी ऐसा अलर्ट अभी तक जारी नहीं किया गया है।
हालाँकि, अब, जब गाम्बिया प्रकरण में यह खुलासा हुआ है कि बच्चों को तो इलाज ही नहीं मिला था, WHO ने इंडोनेशिया मामले पर भी चुपके से बयान जारी किया है। यह बयान 2 नवम्बर को जारी किया गया, इसमें सवाल या उठ रहा है कि WHO को इस प्रकरण पर अपनी बात कहने में इतना समय किस कारण लग गया?
भारत में निर्मित दवाओं से नहीं हुई बच्चों की मौत- गाम्बिया
द पैम्फलेट ने इस खबर की शुरुआत से ही घटना की असल वजह जानने का प्रयास किया। द पैम्फलेट के द्वारा इसके लिए गाम्बिया के नई दिल्ली स्थित दूतवास से सम्पर्क साधने से लेकर स्थानीय मीडिया को देखने जैसे प्रयास शामिल थे।
हमने यह पाया कि अभी तक ऐसी कोई पुख्ता रिपोर्ट नहीं आ सकी है जो स्पष्ट रूप से कह सके कि सिरप ही मौतों के पीछे की असल वजह हैं। इसी तथ्य को अब गाम्बिया की दवा नियामक एजेंसी मेडिसिन कंट्रोल अथॉरिटी ने भी कहा है।

इस संस्था के अधिकारी टिजान जेल्लो ने 31 अक्टूबर को एक प्रेस वार्ता करके काफी नई जानकारियां सामने रखी हैं। गाम्बिया के स्थानीय मीडिया के अनुसार, टिजान जेल्लो ने कहा कि हमारी जांच में यह सामने आया है कि मरने वाले बच्चों में काफी बच्चे ऐसे थे जिन्होंने किसी भी प्रकार की दवा का सेवन ही नहीं किया।
उन्होंने कहा कि 70 बच्चे, जिनकी मृत्यु एक्यूट किडनी इंजरी नामक बीमारी से हुई, उसका कारण भारत में निर्मित सिरप नहीं थे। उन्होंने बताया कि इस मामले में जांच अभी जारी है। जेल्लो ने बयान में कहा कि जिन 70 बच्चों की मौत हुई है, उनमे से कुछ ने किसी दवा का सेवन नहीं किया था।
उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त, जिन बच्चों ने दवाओं का सेवन किया भी था, हमने उनकी भी जाँच की है और वह दवाएं सेवन के लिए सुरक्षित हैं। जेल्लो ने यह भी कहा कि; हमने यह भी देखा की मरने वाले बच्चों में से 95% बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों से थे। गाम्बिया में पिछले 15-20 वर्षों से भीषण बाढ़ देखी जा रही है।
जेल्लो ने कहा कि बच्चों के जांच सैंपल में कुछ बैक्टीरिया पाए गए हैं, और हमारी यह जांच जारी है कि यह बैक्टीरिया मौत का कारण हैं या कोई दवाइयां।