आजादी के समय भारत में भोजन की उपलब्धता एक बड़ा प्रश्न थी, परन्तु 1960 के दशक में हुई हरित क्रान्ति ने इस समस्या को हल कर भोजन की उपलब्धता के विषय में भारत को आत्मनिर्भर बना दिया। आज भोजन के मामले में हम न केवल आत्मनिर्भर हैं बल्कि दुनियाभर में खाद्य पदार्थ निर्यात कर रहे हैं।
पर ऐसा क्यों है कि पश्चिमी जगत के मष्तिष्क में भारत की 19वीं शताब्दी की ही छवि बनी हुई है? यह प्रश्न इसलिए उठता है क्योंकि पिछले दो वर्षों से जारी की जाने वाली ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ (Global Hunger Index, 2022) की रिपोर्ट में हमें श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी नीचे रखा जा रहा है।

कुल 121 देशों का आंकड़ा देने वाली इस रिपोर्ट में भारत को हास्यास्पद तरीके से 107वें स्थान पर रखा गया है। रिपोर्ट में अंतर्विरोध का आलम यह है कि भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रहे और भारत की मदद से भोजन का प्रबंध कर पा रहे देश भी इस सूची में भारत से ऊपर रखे गए हैं।
क्या है ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट?
ग्लोबल हंगर इंडेक्स ‘वेल्ट हुंगेर हिल्फे’ और ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ नाम के दो संगठनों द्वारा हर साल जारी की जाने वाली रिपोर्ट है, जो विश्व के 100 से अधिक देशों में भुखमरी और भोजन की उपलब्धता जैसे विषयों के बारे में जानकरी सामने रखने का दावा करती है।

इस रिपोर्ट का प्रकाशन वर्ष 2006 से प्रारम्भ हुआ था, वर्ष 2022 में आने वाली यह रिपोर्ट इसका 17वां संस्करण है। इसको प्रकाशित करने वाले संगठन ‘वेल्ट हुंगेर हिल्फे’ और ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ का सम्बन्ध यूरोपीय राष्ट्रों जर्मनी और आयरलैंड से है। यह दोनों संगठन मिलकर इस रिपोर्ट को प्रकाशित करते हैं।

‘अनग्लोबल’ है ग्लोबल हंगर इंडेक्स
ग्लोबल हंगर इंडेक्स नाम से प्रकाशित होने वाली यह रिपोर्ट विश्व में भोजन की उपलब्धता के विषय में जानकारी उपलब्ध कराने का दावा करती है। सत्य यह है कि यह रिपोर्ट में मात्र विश्व के 200 से अधिक देशों में से मात्र 121 देशों के विषय में जानकारी दी गई है, वह भी आधी-अधूरी।

रिपोर्ट में एशिया, अफ्रीका और पूर्वी यूरोप तथा लैटिन अमेरिका के देशों को ही शामिल किया गया है। इन देशों को तथाकथित तौर पर ‘थर्ड वर्ल्ड कंट्रीज’ (तीसरी दुनिया के देश) के नाम से पुकारा जाता है। यूरोप के देशों और उत्तरी अमेरिका के देशों कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) को इस रिपोर्ट में नहीं शामिल किया गया है। जबकि ऐसा किसी भी अध्ययन में अभी सिद्ध नहीं हुआ है कि इन देशों में भुखमरी शून्य हो चुकी है।
रिपोर्ट से नदारद पश्चिमी जगत की भुखमरी
रिपोर्ट में मुख्य रूप से पश्चिमी जगत के देशों को छोड़ दिया गया है। रिपोर्ट प्रकाशित करने वाले दोनों संगठनों ने अपने मूल देशों जर्मनी और आयरलैंड तक को छोड़ दिया है। इसके अतिरिक्त अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, डेनमार्क, फ्रांस, स्पेन और अन्य कई देशों को भी रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया है।
अमेरिका के कृषि अनुसंधान विभाग की रिपोर्ट के अनुसार देश में 1.3 करोड़ से अधिक घर ऐसे हैं जो भोजन के मामले में सुरक्षित नहीं हैं। इन घरों में साल के किसी ना किसी समय सभी सदस्यों को पूर्ण भोजन उपलब्ध करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।

इसी रिपोर्ट में यह उल्लेख है कि अमेरिका के अंदर 23 लाख घर ऐसे हैं जिनमें बच्चों को पर्याप्त भोजन नहीं उपलब्ध हो पा रहा है। वहीं, 2.7 लाख से अधिक घर ऐसे थे जिनमें बच्चों को या तो पूरे दिन भूखा रहना पड़ा या एक समय का भोजन नहीं उपलब्ध हो सका।
संयुक्त राज्य अमेरिका जनसंख्या ब्यूरो द्वारा 29 जून 2022 से 11 जुलाई 2022 के बीच किए गए एक सर्वे में यह जानकारी भी सामने आई है कि लगभग 25 करोड़ घरों में से लगभग 8.5 करोड़ से अधिक परिवार ऐसे थे जिनके पास या तो पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं था या पसंद का भोजन नहीं उपलब्ध था।
यूरोप की बात करें तो यूरोस्टैट नाम की एक वेबसाइट के अनुसार, यूरोप में वर्ष 2020 में 8.6% जनसंख्या ऐसी थी जो भोजन प्राप्त करने में असमर्थ थी और 21.7% जनसंख्या यानी हर पांचवा व्यक्ति ऐसे थे जो कि गरीबी के कगार पर खड़े थे। वर्ष 2020 में यूरोपियन यूनियन के देशों की जनसंख्या लगभग 45 करोड़ थी, ऐसे में यदि आंकड़ों को देखें तो यूरोपियन यूनियन में लगभग 4 करोड़ लोग ऐसे थे जो भोजन नहीं जुटा पा रहे थे।

इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने वाले कंसर्न वर्ल्डवाइड के मूल देश आयरलैंड की बात करें तो लगभग 50 लाख की जनसंख्या वाले इस छोटे से देश में 1.5 लाख लोग भुखमरी का जीवन व्यतीत कर रहे है।
मैक्रो ट्रेंड्स नाम की एक प्रतिष्ठित वेबसाइट के अनुसार, रिपोर्ट प्रकाशित करने में सहयोगी दूसरे संगठन वेल्ट ‘वेल्ट हुंगेर हिल्फे’ के राष्ट्र जर्मनी में 2.5% जनसंख्या भुखमरी का जीवन जी रही थी। इस तरह देखा जाए तो जर्मनी में 20 लाख से अधिक लोग भुखमरी का जीवन व्यतीत करने को मजबूर थे।
रिपोर्ट बनाने में भारी खामियां, भारत सरकार की कड़ी प्रतिक्रिया
इस रिपोर्ट पर भारत सरकार ने कड़ा प्रतिरोध जताया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा जारी की गई एक प्रेस रिलीज में रिपोर्ट को भ्रामक और गलत जानकारी प्रसारित करने वाला बताया गया है। साथ ही मंत्रालय ने इस रिपोर्ट में आंकड़े निकालने के लिए उपयोग की गई विधियों पर भी प्रश्न उठाए हैं।
#GlobalHungerReport2022– The index is an erroneous measure of hunger and suffers from serious methodological issues
— PIB India (@PIB_India) October 15, 2022
Misinformation seems to be the hallmark of the annually released Global Hunger Index
Read here: https://t.co/iBNoeqITqJ#GlobalHungerIndex
1/n pic.twitter.com/DDKQn8MyiB
मंत्रालय ने कहा कि यह रिपोर्ट भारत द्वारा अपने नागरिकों को भोजन न उपलब्ध करा पाने जैसी बातें कर के भारत की छवि पर दाग लगाने का प्रयास कर रही है। मंत्रालय ने कहा कि रिपोर्ट में उपयोग किए गए 4 में से 3 पैमाने बच्चों से जुड़े हैं जिनको पूरी जनसंख्या के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता।
वहीं, चौथा पैमाना जिसका नाम अल्पपोषित आबादी का अनुपात है एक ओपिनियन पोल पर आधारित है और हास्यास्पद तथ्य यह है कि भारत जैसे 130 करोड़ जनसंख्या वाले देश में यह पोल 3000 लोगों पर किया गया था जो कि देश का रुख जानने के हिसाब से एक बहुत छोटी संख्या है।
वहीं, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के आँकड़ों को भी आधा-अधूरा और नैतिक रूप से गलत बताया है, जिनका इस रिपोर्ट में उपयोग किया गया है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि ये आंकड़े बल्कि पक्षपात भी दर्शाते हैं। रिपोर्ट में FAO का एक आंकड़ा उपयोग किया गया है जिसके सैम्पल का आकार मात्र 3000 था। मंत्रालय ने ऐसी प्रक्रिया को गलत बताया है।
मंत्रालय के अनुसार देश में खाद्यान्न का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है तो ऐसे में देश में भुखमरी जैसे हालात उत्पन्न होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
बच्चों के विषय में लिए गए आंकड़ों को गलत तरीके से उपयोग कर रही रिपोर्ट
रिपोर्ट बनाने के लिए प्रयुक्त चार पैमानों में से तीन के लिए जो आँकड़े लिए गये हैं वह असल में बच्चों के विषय में हैं। पहला पैमाना जिसका प्रयोग हुआ है, वह बच्चों में लम्बाई के अनुसार वजन का है। इसके अनुसार 5 वर्ष तक के कितने बच्चे ऐसे हैं जो अपनी लम्बाई के अनुसार कम वजन के हैं।

दूसरा पैमाना जो लिया गया है वह यह है कि कितने बच्चे अपनी आयु के अनुपात से कम लम्बाई के हैं। इसमें भी आधार 5 वर्ष तक के बच्चों को बनाया गया है। वहीं तीसरा आँकड़ा बालमृत्यु दर पर है, यानी कितने बच्चों ने 5 वर्ष की आयु से पहले ही जीवन गँवा दिया। चौथा आँकड़ा नागरिकों द्वारा कम कैलोरी पाने से सम्बंधित है। इसमें प्रति व्यक्ति 1800 कैलोरी/दिन का आँकड़ा आधार माना जाता है।
अब इनमें से किसी भी आँकड़े को देश में भुखमरी का आधार नहीं माना जा सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय किया गया लम्बाई का पैमाना भारत के भी सभी बच्चों के लिए लागू हो, ऐसा संभव नहीं है। ऐसे में इसको भारत में भुखमरी का आधार मानना अनुचित है। यही समान रूप से वजन के विषय में लागू होता है।

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में औसत बाल मृत्यु दर (5 साल से कम के बच्चे) 37 प्रति हजार है जबकि भारत लगातार अपनी सामाजिक और स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधार कर यह आंकड़ा 33 पर लाने में सफल रहा है।
वहीं, बाल मृत्यु दर में भी भोजन की उपलब्धता से अधिक बड़े कारण बच्चों में न्युमोनिया, डायरिया जैसे रोग हैं और सही समय पर इलाज न मिलना भी बच्चों की मृत्यु का कारण बनता है। ऐसे में इसे भुखमरी से जोड़ने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
बच्चों के आंकड़ो को पूरी जनसंख्या का बता रही रिपोर्ट
रिपोर्ट में बच्चों के विषय में जुटाए गए आँकड़ों को रिपोर्ट बनाने में 67% का अधिभार दिया जाता है, यानी रिपोर्ट 67% इस पर आधारित होती है कि बच्चों के विषय में तीन पैमानों पर लिए गए आंकड़े कैसे हैं। जबकि रिपोर्ट के बनने के बाद इन आँकड़ों को पूरी जनसंख्या पर लागू कर दिया जाता है।

ऐसे में यह कैसे संभव है कि बच्चों के विषय में लिए गए आधे-अधूरे आंकड़े पूरी जनसंख्या के भुखमरी या उनके भोजन की उपलब्धतता के विषय में सही रिपोर्ट दे सकें? रिपोर्ट में इन सब आंकड़ों के साथ जिस प्रकार की धांधली की गई है, उससे भारत के विरुद्ध पक्षपात का संकेत मिलता है।

भारत के मेडिकल रिसर्च जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों में लम्बाई का कम होना या उनके वजन का कम होना पूर्णतया भुखमरी के कारण हो ऐसा कहना, अतिशयोक्ति है। वर्ष 2020 में इस विषय पर किए गए एक शोध ने यह स्पष्ट है कि बच्चों का बौनापन या वजन कम होना भुखमरी के कारण नहीं बल्कि मानकों के अलग अलग होने के कारण है।
सरकार की महत्वपूर्ण खाद्यान्न योजनाओं को किया गया अनदेखा
देश के अंदर लम्बे समय से सार्वजनिक खाद्यान्न वितरण प्रणाली विद्यमान रही है, जिससे करोड़ों लोगों को अत्यंत सस्ती दर पर राशन मिलता आया है। इस वितरण प्रणाली को और मजबूती वर्ष 2020 के बाद से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के द्वारा दी गई, जिसके अंतर्गत लगभग 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज लगातार दिया जा रहा है।
#Cabinet approves extension of Pradhan Mantri Garib Kalyan Ann Yojana (PMGKAY) for another three months (October 2022-December 2022)#CabinetDecisions pic.twitter.com/Hnwu1AtT6B
— PIB India (@PIB_India) September 28, 2022
कोरोना महामारी प्रभाव से लोगों को बचाने के लिए प्रारम्भ की गई इस योजना के माध्यम से अब तक 1121 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न का वितरण किया जा चुका है, योजना के अंतर्गत लगभग 4 लाख करोड़ की भारी-भरकम राशि सब्सिडी के तौर पर केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को भेजी जा चुकी है।
इसके अतिरिक्त मातृत्व लाभ योजनाओं के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा माता एवं नवजात दोनों की देखभाल की आर्थिक सहायता के लिए पहले बच्चे के जन्म पर 5,000 रूपए दिए जाते हैं। आंगनवाड़ी के जरिए सरकार लगातार पूरे देश भर में छोटे बच्चों के लिए पोषक अन्न का वितरण करवाती है। ऐसे में भुखमरी के यह आंकड़े एक रिपोर्ट कम और भारत के विरुद्ध पक्षपात का कागज ज्यादा लगती है।