हिजाब फारसी भाषा का शब्द है, जिसे अरब भाषा के ‘हजाबा’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘घूंघट’ या परदा होता है। सामान्य तौर पर यह मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाता है, जो इसे सिर और गर्दन को ढ़कने के लिए इस्तेमाल में लेती हैं। इसमें महिलाएं चेहरे के लिए भी एक परदे का उपयोग करती हैं, जिससे उनकी निजता और शालीनता बनी रहती है।
एक साधारण दुपट्टा जो कि धूप और धूल से बचाव के लिए इस्तेमाल किया जाता था, उसको सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान के साथ जोड़ दिया गया है।
हिजाब का उद्भव
हिजाब का उद्भव 7वीं शताब्दी माना जाता है, जब इस्लाम धर्म का अस्तित्व भी नहीं था। 627 CE के करीब ‘दरात-ए-हिजाबी’ शब्द का प्रचलन था, जिसका मतलब है ‘घूंघट लेना’। यह पैगंबर की बीवियों के लिए इस्तेमाल में लिया जाता था। हालाँकि, विशेषज्ञों को इस बात पर संशय है कि यह आम महिलाओं के लिए था या सिर्फ पैगंबर की पत्नियों के लिए।
कई जानकारों के अनुसार, कुरान में ‘परदा’ शब्द का इस्तेमाल करीब 7 जगहों पर किया गया है लेकिन, इसका महिलाओं के परदा करने से संबंध नहीं है। उनका यह भी कहना है कि हिजाब पहनना इस्लामिक शिक्षाओं का हिस्सा नहीं है।
कुरान का सुरा 33ः53 कहता है कि जब आप उनकी पत्नी से कुछ माँगते हो तो एक परदे के पीछे से पूछो। यह आपके और उनके दिलों को शुद्ध करने वाला है।
बहरहाल, फारसी देश में इस्लाम के प्रवेश के बाद घूंघट का प्रचलन बढ़ गया और मुस्लिम समाज की संस्कृति का हिस्सा बन गया। ऐसी धारणा भी सामने आई कि महिला और पुरुष दोनों के लिए परदा प्रथा का चलन था, जिसमें महिलाएं अपनी शालीनता बनाए रखने के लिए परदे का उपयोग करती थी तो पुरुष महिलाओं के सामने अपनी नजर नीची रखने और कामुक (यौन) इच्छाओं को काबू में रखने के लिए परदा करते थे।
1960 से 1970 के दशक में इसमें बड़ा बदलाव सामने आया जब मुस्लिम देशों में पश्चिमी सभ्यता और वहाँ के वेशभूषा का असर बढ़ने लगा। हालाँकि, सोवियत-अफगान युद्ध (1979-1989), पाकिस्तान में सैन्य शासन की शुरुआत और 1979 के ईरान युद्ध जैसी घटनाओं के सामने आने के बाद पश्चिमी सभ्यता मुस्लिम राष्ट्रों में ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह पाई। मुस्लिम देशों में इस्लामवादी प्रभाव के बढ़ने से एक बार फिर पारंपरिक मुस्लिम परिधानों का प्रचलन बढ़ गया।
हिजाब पर बैन लगाने वाले देश
हिजाब को मुस्लिम महिलाओं के लिए धार्मिक और उदारवादी दोनों अधिकारों का प्रतीक माना जाता है। हिजाब को महिलाएं अलग-अलग तरीकों से पहनती है लेकिन, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि वो कौनसे देश में रहती हैं और किस मुस्लिम समुदाय से आती हैं। बीते कुछ वर्षों में कई देशों ने हिजाब पहनने पर बैन लगा दिया है। इनमें से कुछ पर नजर डालते हैं-
2004 में स्कूलों में हिजाब और धार्मिक वस्त्रों को बैन करने वाला फ्रांस दुनिया का पहला देश बन गया और इसी के 6 साल बाद फ्रांस ने सार्वजनिक स्थलों पर पूरे चेहरे पर नकाब या परदा करने पर भी बैन लगा दिया है। बोस्निया और हर्जेगोविना ने भी अपने देश के संस्थानों और न्यायालयों के अंदर हिजाब पहनने को प्रतिबंधित कर दिया है।
2009 में कोसोवो ने भी पब्लिक स्कूलों, विश्वविद्यालयों और अन्य सरकारी संस्थाओं में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। उज्बेकिस्तान ने 2012 में बाजार में हिजाब और चेहरे के नकाबों को बेचने पर रोक लगा दी थी। 2018 में कजाकिस्तान ने सार्वजनिक स्थानों पर नकाब, सिर ढँकने के वस्त्र और ऐसे ही अन्य कपड़ों को पहनने पर प्रतिबंध लगाया था।
सीरिया और मिस्त्र ने विश्वविद्यालयों में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए चेहरे पर परदा पहनने को प्रतिबंधित किया था। रूस, किर्गीस्तान, बेल्जियम, डेनमार्क, नीदरलैंड, श्रीलंका और स्विट्जरलैंड जैसे देशों ने भी हिजाब को सार्वजनिक स्थानों पर पहनने से प्रतिबंधित किया हुआ है।
धार्मिक वस्त्र क्यों हैं महत्वपूर्ण
20 वीं सदी के अंत में मिस्त्र के अंदर इस्लामी आस्था को पुनर्जीवित करने के लिए हिजाब की एक बार फिर वापसी हुई। यहाँ पर ‘सहवाह’ नाम के एक आंदोलन का उदय हुआ, जिसमें आंदोलनकर्ता महिलाओं ने इस्लामिक वस्त्र पहने जो कि सिर से लेकर टखने तक पहने जाने वाला गाउन था, जिसे छाती और पीठ छुपाने के लिए सिर पर परदे के साथ ढ़ीला पहना जाता था।
आंदोलन का बड़े पैमाने पर असर देखा गया, जिसके बाद मुस्लिम महिलाओं ने अपनी धार्मिक भावनाओं का प्रदर्शन करने और पश्चिमी सभ्यता की निंदा के लिए सार्वजनिक स्थानों में इस परिधान को पहनना शुरू कर दिया।
मुस्लिम महिलाएं धार्मिक वस्त्रों को उनके सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं को प्रदर्शित करने का सकारात्मक जरिया बताती हैं। हालाँकि, इन्हीं देशों का उदारवादी गुट इन धार्मिक प्रतीकों को देश की संप्रभुता और धर्मनिरपेक्षता की राह में रोड़ा बताता है।
हिजाब के विपक्ष में रहने वाले एक ईरानी-अमेरिकन पत्रककार, मसीह अलीनेजाद ने कहा है कि हिजाब दमन का सबसे बड़ा प्रतीक है, हमें इस दीवार को गिराने की जरूरत है।
‘हिजाब’ हिंसा से पीड़ित
ईरान में हाल ही में एक 22 वर्षीय कुर्द महिला की पुलिस द्वारा हमला करके बेरहमी से मारपीट की गई थी। पीड़ित महिला ने अस्पताल में तीन दिनों तक अपनी जिंदगी से संघर्ष करने के बाद दन तोड़ दिया था। इस घटना ने दुनियाभर में एक बार फिर हिजाब को लेकर विवाद खड़ा कर दिया है।
पुलिस के अनुसार, महसा अमिनि ने देश के ‘ड्रेस कोड’ का पालन नहीं किया था। जिस ड्रेस कोड की यहाँ बात हो रही है वो 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद सामने आया था, जिसमें सभी महिलाओं को सिर तक ढँकने वाला हिजाब पहनना अनिवार्य किया गया था। ईरानी महिला का हिजाब हिंसा को लेकर यह पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी ऐसे ही कई हिंसक घटनाएं सामने आ चुकी है।
बांग्लादेश एक ऐसा इस्लामिक देश है जहाँ महिला द्वारा हिजाब पहनना उसका विकल्प है ना कि कोई अनिवार्यता। यह फैसला 2010 के एक मामले पर बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए दिया था कि किसी को भी व्यक्तिगत इच्छा के विरुद्ध धार्मिक वस्त्र पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
हालाँकि, फरवरी 2022 में, बांग्लादेश की एड-दीन सकीना मेडिकल कॉलेज ने गैर-मुस्लिम विद्यार्थियों के लिए भी हिजाब को पहनना अनिवार्य कर दिया था। इस फैसले का बांग्लादेश के ही हिंदू संगठन ‘बांग्लादेश जाति हिंदू मोहजोत’ ने खुलकर विरोध किया था।
कर्नाटक में सामने आए हिजाब विवाद को भी बांग्लादेश के इस्लामावादियों ने भारत में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के दमन के रूप में प्रदर्शित किया था। यहाँ तक कि उन्होंने वहां के हिंदू निवासियों को धमकाया था कि अगर मुस्लिम छात्राओं को स्कूलों में हिजाब के साथ प्रवेश नहीं मिलेगा को उसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
भारत का इसपर पक्ष
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जिसके संविधान में अनुच्छेद 25-28 में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। हालाँकि, सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सरकार ऐसी धार्मिक प्रथाओं पर उचित प्रतिबंध लगा सकती है
हाल ही में कर्नाटक के हिजाब विवाद पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब पहनने की अनिवार्यता खत्म करते हुए कहा था कि हिजाब इस्लामिक धर्म में अनिवार्य नहीं माना गया है।
सभी के पास व्यक्तिगत चुनाव का अधिकार होना चाहिए कि उन्हें क्या पहनना है और क्या नहीं। किसी भी तरह से कोई धार्मिक प्रथा देश के भविष्य को उनके शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती है।