विकसित देशों के कुछ अर्थशास्त्रियों ने भारत के विरुद्ध जैसे एक अभियान ही चला रखा है और भारत के आर्थिक विकास को वे पचा नहीं पा रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था ने अप्रैल-जून 2022 तिमाही में 13.5% की वृद्धि दर हासिल की है और वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत 8% की विकास दर हासिल करने जा रहा है।
Strong #GDPgrowth of 13.5% shows India is superbly positioned to further its growth under the leadership of Hon'ble PM Sh @narendramodi & Hon'ble FM Smt @nsitharaman. We must build on reforms in vital sectors as we march towards #AmritKaal: Mr @sumant_sinha, #ASSOCHAM President. pic.twitter.com/cn12OpXRlU
— ASSOCHAM (@ASSOCHAM4India) August 31, 2022
इस प्रकार भारत न केवल आज विश्व की सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था बन गया है बल्कि भारत आज विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन गया है। परंतु, फिर भी इन अर्थशास्त्रियों द्वारा मानव विकास सूचकांक में भारत को श्रीलंका से भी नीचे बताया जाना, आश्चर्य का विषय है।
यह विरोधाभास इन अर्थशास्त्रियों को कहीं दिखाई नहीं दे रहा है, जबकि श्रीलंका की हालत तो जग जाहिर है एवं आर्थिक दृष्टि से भारत एवं श्रीलंका की तुलना ही नहीं की जा सकती है। आर्थिक विकास के साथ मानव विकास भी जुड़ा है। भारत में आर्थिक विकास तो तेज गति से हो रहा है परंतु इन अर्थशास्त्रियों की नजर में भारत में मानव विकास में लगातार गिरावट आ रही है। यह एक सोचनीय विषय है।
Protests continue in Colombo Sri Lanka, demanding President & PM to step down.
— Sri Lanka Tweet 🇱🇰 (@SriLankaTweet) July 9, 2022
📌Protesters storm President's House
📌Protesters storm President's Office
📌Protesters storm Prime Minister's House
📸Twitter #LKA #SriLanka #EconomicCrisisLK #SriLankaCrisis #SriLankaProtests pic.twitter.com/pzJlKUG4Qo
अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र डेवलपमेंट प्रोग्राम ने मानव विकास सूचकांक (एचडीआर) प्रतिवेदन 2021-22 जारी किया है। एचडीआर की वैश्विक रैंकिंग में भारत 2020 में 130वें पायदान पर था और 2021 में 132वें पर आ गया है, ऐसा इस प्रतिवेदन में बताया गया है।
मानव विकास सूचकांक का आकलन जीने की औसत उम्र, पढ़ाई, और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर किया जाता है। कोरोना महामारी के खंडकाल में भारत का इस सूचकांक में निचले स्तर पर आना कोई हैरान करने वाली बात नहीं होनी चाहिए। परंतु, वर्ष 2015 से वर्ष 2021 के बीच भारत को एचडीआर रैंकिंग में लगातार नीचे जाता हुआ दिखाया जा रहा है।
India ranks 132 out of 191 countries in 2021 human development index, according to report released by United Nations Development Programme
— Press Trust of India (@PTI_News) September 8, 2022
जबकि, इसी अवधि में चीन, श्रीलंका, बांग्लादेश, यूएई, भूटान और मालदीव जैसे देशों की रैंकिंग ऊपर जाती हुई दिखाई जा रही है। श्रीलंका, बांग्लादेश एवं मालदीव जैसे देशों की आर्थिक स्थिति के बारे आज हम अनभिज्ञ नहीं है।
इसी प्रकार इन अर्थशास्त्रियों द्वारा भारत में गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या को भी बढ़ाचढ़ा कर पेश किया जा रहा है। इनके अनुसार, भारत के 23 करोड़ लोग प्रतिदिन 375 रुपए से भी कम कमाते हैं।
भारत की जनसंख्या यदि 140 करोड़ मानी जाय तो देश की कुल जनसंख्या के 16.42% नागरिक 375 रुपए से कम कमा रहे हैं, जबकि विश्व बैंक द्वारा हाल ही में इस सम्बंध में जारी किए गए आँकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं।
विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओ में आज भारत के ऊपर अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी आते है। अगर इन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गरीबी के आँकड़े देखे तो कई चौकाने वाले खुलासे सामने आते है।
सबसे पहले अगर अमेरिका की बात की जाय तो अमेरिका की कुल आबादी के 11.4% लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। जबकि अमेरिका को विश्व का सबसे अमीर एवं विकसित देश माना जाता है। चीन के सम्बंध में तो कोई वास्तविक आँकड़े सामने आते ही नहीं हैं, अतः चीन की बात करना ठीक नहीं होगा। जर्मनी में भी स्थिति अमेरिका जैसी ही है।
कुल आबादी में से 15.5% नागरिक गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने को मजबूर हैं। जापान के सम्बंध में वर्ष 2020 में आई एक खबर के अनुसार जापान में गरीबों की संख्या बढ़ रही है एवं मध्यमवर्गीय लोगों की संख्या कम हो रही है। जापान में 15.7% नागरिक गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं।
यह भी एक चौंकाने वाली बात है कि विश्व के सबसे अमीर देशों की सूची में अमेरिका में सबसे ज्यादा आत्महत्याएँ होती हैं। जबकि विश्व की सबसे बड़ी उक्त चार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में सबसे कम आत्महत्याएँ होती हैं। यह भी मानव विकास सूचकांक का एक अवयव है, परंतु मानव विकास सूचकांक में भारत की लगातार गिरती स्थिति ही दर्शाई जाती है।
अब भारत की बात करते हैं। भारत में वर्ष 1947 में 70% लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे थे, जबकि अब वर्ष 2020 में देश की कुल आबादी का लगभग 10% हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहा है। 1947 में देश की आबादी 35 करोड़ थी जो आज बढ़कर लगभग 136 करोड़ हो गई है।
अभी हाल ही में विश्व बैंक ने एक पॉलिसी रिसर्च वर्किंग पेपर (शोध पत्र) जारी किया है। इस शोध पत्र के अनुसार वर्ष 2011 से 2019 के बीच भारत में गरीबों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
वर्ष 2011 में भारत में गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे व्यक्तियों की संख्या 22.5% थी, जो वर्ष 2019 में घटकर 10.2% पर नीचे आ गई है, अर्थात गरीबों की संख्या में 12.3% की गिरावट दृष्टिगोचर है।
The poverty in #India is 12.3% points lower in 2019 as compared to 2011. Poverty headcount rate has declined from 22.5% in 2011 to 10.2% in 2019: #WorldBank Policy Research Working Paper pic.twitter.com/tPZNxXz4cc
— All India Radio News (@airnewsalerts) April 17, 2022
अत्यंत चौंकाने वाला एक तथ्य यह भी उभरकर सामने आया है कि भारत के शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या बहुत तेज गति से कम हुई है। जहाँ ग्रामीण इलाकों में गरीबों की संख्या वर्ष 2011 के 26.3% से घटकर वर्ष 2019 में 11.6% पर आ गई है अर्थात यह 14.7% से कम हुई है तो शहरी क्षेत्रों में यह संख्या 7.9% से कम हुई है।
उक्त शोधपत्र में एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह भी बताया गया है कि वर्ष 2015 से वर्ष 2019 के बीच गरीबों की संख्या अधिक तेजी से घटी है। वर्ष 2011 से वर्ष 2015 के दौरान गरीबों की संख्या 3.4% से घटी है वहीं वर्ष 2015 से 2019 के दौरान यह 9.1% से कम हुई है और यह वर्ष 2015 के 19.1% से घटकर वर्ष 2019 में 10% पर नीचे आ गई है।
वर्ष 2017 एवं वर्ष 2018 के दौरान तो गरीबी 3.2% से कम हुई है। यह कमी पिछले दो दशकों के दौरान सबसे तेज गति से गिरने की दर है। ग्रामीण इलाकों में छोटे जोत वाले किसानों की आय में वृद्धि तुलनात्मक रूप से अधिक अच्छी रही है, जिसके कारण ग्रामीण इलाकों में गरीबों की संख्या वर्ष 2015 के 21.9% से वर्ष 2019 में घटकर 11.6% पर नीचे आ गई है, इस प्रकार इसमें 10.3% की आकर्षक गिरावट दर्ज की गई है।
उक्त शोधपत्र में यह भी बताया गया है कि बहुत छोटी जोत वाले किसानों की वास्तविक आय में 2013 और 2019 के बीच वार्षिक 10% की वृद्धि दर्ज हुई है। वहीं, अधिक बड़ी जोत वाले किसानों की वास्तविक आय में केवल 2% की वृद्धि प्रतिवर्ष दर्ज हुई है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने तो अपनी एक अन्य रिपोर्ट में भारत द्वारा कोरोना महामारी के दौरान लिए गए निर्णयों की सराहना करते हुए कहा है कि विशेष रूप से गरीबों को मुफ्त अनाज देने की योजना (प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना) को लागू किए जाने के चलते ही भारत में अत्यधिक गरीबी का स्तर इतना नीचे आ सका है और अब भारत में असमानता का स्तर पिछले 40 वर्षों के दौरान के सबसे निचले स्तर पर आ गया है।
#India has been among the world’s fastest-growing economies in recent years, lifting millions out of poverty. However, India is now in the midst of a significant economic slowdown. Read our annual assessment of economy and policy recommendations: https://t.co/vetMdPcceK pic.twitter.com/SEmM1vMXXV
— IMF (@IMFNews) December 23, 2019
ज्ञातव्य हो कि भारत में मार्च, 2020 में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) प्रारम्भ की गई थी। इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा लगभग 80 करोड़ लोगों को प्रति माह प्रति व्यक्ति पाँच किलो अनाज मुफ्त में उपलब्ध कराया जाता है एवं इस योजना की अवधि को अभी हाल ही में दिसम्बर 2022 तक आगे बढ़ा दिया गया है।
उक्त मुफ्त अनाज, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) के अंतर्गत काफी सस्ती दरों पर (दो/तीन रुपए प्रति किलो) उपलब्ध कराए जा रहे अनाज के अतिरिक्त है।
इस प्रकार, विकसित देशों के अर्थशास्त्री मानव विकास सूचकांक को आँकते समय न केवल भारत के आर्थिक विकास को पूर्णतः नजरअंदाज कर रहे हैं बल्कि भारत में तेजी से कम हो रही गरीबी एवं आर्थिक असमानता पर भी कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। किसी भी देश में यदि आर्थिक विकास होकर गरीबों की संख्या में कमी आएगी तो स्वाभाविक रूप से उस देश के नागरिकों का भी विकास होगा ही।