अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) समय-समय पर वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति और भविष्य में विकास की दर और अन्य सम्बंधित बातों की भविष्यवाणी करता है। हाल ही में संस्था ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर अपने अनुमान जारी किए, जिन्हें लेकर प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। संस्था ने कहा है कि अभी और भी बुरा दौर आनेवाला है।
वित्त वर्ष 2022-23 के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में भारी गिरावट की ओर इशारा किया है। हालाँकि, गिरावट के इन पूर्वानुमान के बीच भारत की स्थिति विकसित देशों से कहीं बेहतर दिखाई दे रही है। वैश्विक मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देने और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने वाले इस संगठन ने वित्त वर्ष 2022-23 में भारत की विकास दर के लिए अनुमान 6.8% बताया है। हालाँकि, पहले इसे 7.4% निर्धारित किया गया था।
IMF (International Monetary Fund) projects India's growth projection to be 6.8% for 2022 & 6.1% for 2023
— ANI (@ANI) October 11, 2022
IMF says, "World’s 3 largest economies—US, China & the euro area—will continue to stall…We expect global inflation to peak at 9.5% this year before slowing to 4.1% by 2024" pic.twitter.com/IccimK3tcx
अपने अनुमान को पुनर्निर्धारित करते हुए अंतरराष्ट्रीय संगठन ने इसका मुख्य कारण लंबे समय से महंगाई, रूस-यूक्रेन युद्ध और बढ़ती ब्याज दरों को बताया है। साथ ही, IMF ने कहा कि बाहरी माँग में कोई बदलाव न होने से 2023 में यह आँकड़ा करीब 6.1 प्रतिशत रह सकता है।
IMF द्वारा जारी सूची के अनुसार भारत भले ही 10वें स्थान पर नजर आ रहा है, पर बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में 5 प्रतिशत से अधिक विकास दर वाला इकलौता देश है। यूरोप का पावर हाउस और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी की जीडीपी दर वित्त वर्ष 2022-2023 में -0.3% रहने का अनुमान है। जर्मनी के साथ ही इटली और रूस की विकास दर भी निगेटिव में रहने की संभावना है। वहीं, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस जैसे देशों की विकास दर में मामूली बढ़ोतरी रहने की संभावना है।
सूची जारी करने के साथ ही IMF ने भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था के और नीचे जाने की संभावना जताई है। उसके अनुसार वर्तमान से 2026 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में आर्थिक उत्पादन में 4 ट्रिलियन डॉलर का घाटा हो सकता है जो जर्मनी की जीडीपी के बराबर है।
इसी बीच, विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने भी वैश्विक मंदी की आशंका जताई है। संगठन के अनुसार, 2001 के बाद से वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक गिरावट देखी जा रही है। इसमें WEF ने कोरोना काल के दौरान आए आर्थिक संकट को भी शामिल नहीं किया है। इस रिपोर्ट में मूलतः दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में कमजोरी की ओर इशारा किया गया है जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, जर्मनी, फ्रांस, इटली, यूनाईटेड किंगडम और जापान भी शामिल हैं।
IMF का कहना है कि बड़ी जनसंख्या और जटिल मुद्दों के बावजूद भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया है। IMF के वित्तीय मामलों के उप निदेशक पाओलो माउरो का कहना है कि भारत की प्रत्यक्ष लाभ योजनाएं चमत्कारिक हैं। भारत सरकार की योजनाएं गरीब वर्ग को लाभ में शामिल कर रही हैं जिसका सीधा फायदा देश की मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय संगठन की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जिएवा का मानना है कि कमजोर अर्थव्यवस्थाओं के बीच भारत आशा की किरण है। क्रिस्टलीना के अनुसार, भारत बढ़ती ताकत के साथ जी-20 देशों का नेतृत्व करने की दिशा में बढ़ रहा है।
India deserves to be called a bright spot on this otherwise dark horizon because it has been a fast-growing economy, even during these difficult times, but most importantly,this growth is underpinned by structural reforms: Kristalina Georgieva, Managing Director, IMF
— ANI (@ANI) October 13, 2022
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भारत की स्थिति भले ही उत्साहित करने वाली है लेकिन, बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के नुकसान से वैश्विक अर्थव्यवस्था को खतरा होगा और उसका असर भारत पर भी पड़ेगा। भारत में यदि सितंबर का आंकड़ा देखें तो खुदरा मुद्रास्फीति (Retail Inflation) 7.41% पर रही। हालांकि, इस पर घरेलू अर्थव्यवस्था से अधिक वैश्विक स्तर पर आ रहे खाद्य और ऊर्जा के मूल्यों में बदलाव का प्रभाव है।
उदाहरण के तौर पर राजनीतिक परिस्थितियों के चलते हाल ही में रूस और OPEC+ देशों ने यह तय किया कि वो तेल का उत्पादन करना ही कम कर देंगे, जिससे तेल के दाम 110 डॉलर प्रति बैरल पहुँच सकते हैं। कच्चे तेल के दाम बढ़ने का सीधा असर अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति पर पड़ने वाला है। जहाँ भारत पर इसका प्रभाव सामने आने पर रुपया डॉलर के मुकाबले 84-85 रुपए के स्तर तक पहुँच सकता है।
संभव है कि इसका फायदा देश में निवेश के जरिए मिले। मुद्रा का मूल्य गिरने पर निर्यात में बढ़ोतरी देखी जाती है, जिससे IT कंपनियों के व्यापार में बढ़ोतरी होती है। हालाँकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि निर्यात में बढ़ोतरी होगी या नहीं यह कहा नहीं जा सकता क्योंकि, विश्व की बाकी अर्थव्यवस्थाएं चरमरा गई हैं।
बहरहाल, 2007 से 2009 के बीच रही वैश्विक मंदी के बीच भी भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया था तो अभी भी हालात इतने खराब नहीं है। भारत का बाजार बहुत बड़ा है, जिसका सीधा फायदा वित्तीय मजबूती के रूप में मिलता है। औद्योगिक क्षेत्र में भारत का प्रदर्शन गए वित्त वर्ष से अच्छा रहा है। लगातार स्टार्टअप और यूनिकॉर्न की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। सेवा क्षेत्र लगातार मजबूत हो रहा है और कोरोना काल के बाद पर्यटन क्षेत्र भी एक बार फिर रफ्तार पकड़ रहा है। हाल ही में आए आँकड़ों के अनुसार, जम्मू कश्मीर में आने वालों पर्यटकों की संख्या में जोरदार उछाल देखा गया है।
पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं पर दृष्टि डालें तो वे व्यवस्थित नजर आती हैं लेकिन, यहीं उनकी परेशानी का कारण भी है। ऐसी अर्थव्यवस्थाओं में मामूली घटत-बढ़त में संपूर्ण अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है। वहीं, भारत में लचीली अर्थव्यवस्था है जिससे वैश्विक परिस्थितियां हो या कोरोना जैसी महामारी थोड़ी बहुत जद्दोजहद के बाद भी देश इससे बाहर निकल ही जाता है। देश को संख्या बल का फायदा है, बड़ा बाजार है और लोक कल्याणकारी योजनाएं तो हैं ही, जो देश को वैश्विक मंदी में बचाए रखती हैं।