यूरोप की ज्वलंत राजनीति में एक बड़ा बदलाव लाते हुए, इटली की जनता ने दक्षिणपंथी नेता जियोर्जिया मेलोनी और उनकी पार्टी ‘ब्रदर्स ऑफ इटली’ को भारी जनमत दिया है। अगर शुरुआती रुझानों की मानें तो दक्षिणपंथी पार्टी को अकेले ही 25.7% वोट मिलना तय है। इटली में हो रहे इस बदलाव पर पूरे यूरोप की नजर है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम समस्त विश्व राजनीति पर दिखेगा।
कौन है दक्षिणपंथी नेता जियोर्जिया मेलोनी?
जियोर्जिया मेलोनी का जन्म रोम में 15 जनवरी, 1977 को हुआ था। उनके पिता सार्डिनिया से थे और उसकी माँ सिसिली मूल की। उसके पिता, जो एक कर (Tax) सलाहकार थे, ने परिवार छोड़ दिया जब मेलोनी की उम्र महज़ ग्यारह वर्ष की थी।

वर्ष 1992 में, 15 साल की उम्र में, मेलोनी एक नव-फासीवादी राजनीतिक दल, इटालियन सोशल मूवमेंट (MSI) की युवा शाखा, यूथ फ्रंट में शामिल हो गई। यहीं से उनकी दक्षिणपंथी विचारधारा की शुरआत हुई।
2006 में चैंबर ऑफ डेप्युटीज़ की सबसे कम उम्र की उपाध्यक्ष बनने से 2012 में स्वयं अपनी पार्टी खड़ी करने तक का उनका राजनीतिक जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा।
अपने भाषणों में कई बार उन्होंने LGBT समुदाय और अवैध आप्रवासियों के खिलाफ बोला है। वह खुद की ईसाई पहचान को मजबूती से पेश करती आईं है साथ ही वामपंथी विचारधारा पर परंपरागत ईसाई तौर-तरीकों से खिलवाड़ का आरोप लगाती रही हैं।

अपने चुनाव प्रचार को भी उन्होंने ‘पहचान’, ‘भगवान’, ‘मातृभूमि’ और ‘परिवार’ की रक्षा पर केंद्रित किया। अपने नारे से उन्हें इटली के आम जनमानस में खासी लोकप्रियता मिली।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इटली में दक्षिणपंथी सरकार
इटली की राजनीति में दक्षिणपंथ का उदय जहां कई उदारवादियों के लिए ‘भय का माहौल’ उत्पन्न कर रहा है तो वहीं इतिहासकारों के लिए यह विस्मयकारी क्षण है।
गौरतलब है कि बेनितो मुसोलिनी इटली में अंतिम दक्षिणपंथी नेता थे। उल्लेखनीय है कि बेनितो मुसोलिनी ने इटली में फासिस्ट पार्टी का नेतृत्व किया था। द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर के साथ बेनितो मुसोलिनी ने अमरीका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और अन्य देशो के खिलाफ जंग में समस्त विश्व को झोंकने का काम किया था।

द्वितीय विश्वयुद्ध में इटली को लगातार हर मोर्चों पर हार मिलने के बाद जनता और पार्टी दोनों में ही बेनितो मुसोलिनी की विश्वसनीयता कम हो गई। वर्ष 1945 में इटली के वामपंथी लड़ाकों द्वारा उन्हें गोली मार कर खत्म कर दिया गया।
कई जानकारों के हिसाब से जियोर्जिया मेलोनी और उनकी पार्टी ‘ब्रदर्स ऑफ इटली’ की जड़ें बेनितो मुसोलिनी की फासिस्ट पार्टी से हैं। मेलोनी की पार्टी के लोगो में आग की लपटें चित्रित हैं जो 20वीं शताब्दी की शुरुआत में फासीवाद का प्रतीक था। मेलोनी ने पार्टी के लोगो से जलती हुओ लौ हटाने से इनकार कर दिया है।
यूरोप की राजनीति में इसके मायने
इटली में सत्ता-परिवर्तन और वह भी दक्षिणपंथी सरकार बनना, यूरोपीय राजनीति पर गहरा प्रभाव दिखाएगा। अगर कुछ चंद ज्ञानविदों को छोड़ दें तो भारतीय उपमहाद्वीप में यूरोपीय राजनीति की बारीकियों को ले कर अधिक सजगता मुश्किल ही देखी जाती है क्योंकि यूरोप की राजनीति का विश्लेषण यूरोपीय यूनियन से शुरू ना हो तो यह हास्यपद प्रतीत होगा।
क्या है यूरोपियन यूनियन?
यूरोपीय यूनियन मुख्यत: यूरोप में स्थित 27 देशों का एक राजनैतिक एवं आर्थिक मंच है। इन देशों में आपस में प्रशासकीय साझेदारी होती है जो संघ के कई या सभी राष्ट्रों पर लागू होती है।
कई सालों तक यूरोपीय यूनियन, अमरीका और सोवियत यूनियन (बाद में रूस) के बाद तीसरी महाशक्ति के रूप में काबिज रहा।

यह स्थिति 2010 में बदली जब यूरोपीय यूनियन को एक साथ कई चुनौतियों से जूझना पड़ा। साथी देशों पर बढ़ता कर्ज, अफ्रीकी और एशियाई नागरिकों की यूरोप में बढ़ती आबादी से लेकर ब्रेक्सिट तक ईयू में बहुत कुछ बदल गया है।
कई देशों में दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टियों ने बढ़ते आप्रवासियों के मुद्दे पर जनता को लामबंध किया है। इसके साथ ही बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी भी ज्वलंत समस्याएं हैं, जिनका उत्तर यूरोप की लिबरल और वामपंथी सरकारों के पास नहीं था।
कई यूरोपीय देशों की तरह इटली भी इस दौर से गुजर रहा था जो कोविड महामारी के समय चरम पर पहुंच गया।
पश्चिमी मीडिया द्वारा जियोर्जिया मेलोनी को ‘कट्टर दक्षिणपंथी’, ‘नव-फासिस्ट’ के साथ ‘यूरोस्केप्टिक’ भी बताया गया है। ‘यूरोस्केप्टिक’ — इस शब्द के यूरोपीय राजनीति में काफी मायने रखते हैं। अगर आसान भाषा में कहें तो यह शब्द एक ऐसे नेता के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो ‘यूरोपियन यूनियन विरोधी’ हो।
अपने चुनावी भाषणों में दक्षिणपंथी नेता जियोर्जिया मेलोनी ने यूरोपियन यूनियन के अधिकारियों के अत्यधिक नौकरशाही बर्ताव पर कड़ी आलोचना की थी।
कई वक्तव्यों में उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा था कि सत्ता पाने के बाद अगर काम-काज में यूरोपीय यूनियन की नीतियां अड़चन बनी तो वह राष्ट्रहित को वरीयता देंगी।
यूरोस्केप्टिक नेता अकसर ईयू के अधिकारियों पर मनमानी करने का आरोप लगाते रहे हैं। बीते कुछ वर्षों से कई यूरोपी देश में ईयू के खिलाफ जन-भावना उभार पर हैं।
Giorgia Meloni: "Thanks Italy!" History is written. Italy belongs to the Italians, not to Ursula von der Leyen! pic.twitter.com/ebDdL65m2g
— RadioGenova (@RadioGenova) September 26, 2022
इटली में दक्षिणपंथी सरकार बनना तय देखते हुए हाल ही में ईयू की चेयरमैन उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने एक चेतावनी जारी की। अपने बयान में उन्होंने कहा कि ब्रसेल्स के पास गलत सदस्य राज्यों से निपटने के लिए ‘उपकरण’ हैं। इटली के सोशल मीडिया और राष्ट्रवादी विचारधारा से ताल्लुख रखने वालों ने ईयू की चेयरमैन के इस बयान पर गहरी आपत्ति जताई।
इटली में जियोर्जिया मेलोनी और ब्रदर्स ऑफ इटली की संभावित सरकार बनने से यूरोप के दूसरे दक्षिणपंथी और यूरोस्केप्टिक नेता भी अब अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं।
फ्रांसीसी राजनेता मरीन ले पेन और उनकी दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली ने इटली में परिणाम की सराहना करते हुए इसे ईयू के लिए ‘विनम्रता का सबक’ भी बता दिया।
स्पेन के धुर दक्षिणपंथी वोक्स विपक्षी दल (Vox) के नेता सैंटियागो अबस्कल ने ट्वीट किया कि “लाखों यूरोपीय इटली से अपनी उम्मीदें लगा रहे हैं।”
इटली में दक्षिणपंथ के उदय से अब ईयू के खिलाफ भी आवाजें प्रखर होंगी। ब्रिटेन की तरह और कई सदस्य देश — जिनमे इटली एक संभावित है — अब ईयू की बेड़ियों से निकलने की मांग कर सकते हैं।
यूरोप में दक्षिणपंथ
यूरोप की राजनीति इस समय विस्थापन से गुजर रही है। यूक्रेन और रूस युद्ध में ईयू देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। हालांकि, इससे ज्यादा नुकसान यूरोप को हो रहा है। रूस की गैस ना लेने से सम्पूर्ण यूरोप एक ‘ऊर्जा संकट’ से गुजर रहा है।

आम लोग बिजली के बढ़ते बिल से परेशान हैं तो वही कई उद्योग बंद होने की कगार पर हैं। इस सब के बीच दक्षिणपंथी विचारधारा को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है।
दक्षिणपंथी नेताओं ने लिबरल और वामपंथी सरकारों पर यूरोप को राष्ट्रहित से अधिक वरीयता देने का आरोप लगाया है।
यूक्रेन-रूस युद्ध ने यूरोप की लिबरल विचारधारा वाली राजनीतिक पार्टियों का संकट बढ़ाया जरूर है लेकिन उपमहाद्वीप में दक्षिणपंथ का उदय इससे पहले ही शुरू हो चुका था।
पिछले साल फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में दक्षिणपंथी मरीन ले पेन को रिकॉर्ड 13.3 मिलियन वोट मिले – यानी कुल का 41% से अधिक। इमैनुएल मैक्रों दूसरी बार अवश्य फ्रांस के राष्ट्रपति बने लेकिन उनके दक्षिणपंथी विपक्ष के वोट प्रतिशत बढ़ोतरी से पूरा यूरोप आश्चर्यचकित हुआ था।
स्वीडन में दक्षिणपंथी पार्टी ‘स्वीडन डेमोक्रेट’ भी सरकार चला रही है। हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबन, जो एक प्रखर राष्ट्रवादी और रूढ़िवादी है, वह भी यूरोपीय यूनियन के प्रमुख विरोधी है।
दक्षिणपंथ के उदय से लिबरल राजनीतिक पार्टियों में भय की उत्पत्ति होना कोई नई बात नहीं हैं लेकिन इसके साथ ही उन्हें यह भी विमर्श करना चाहिए कि आखिर क्यों अपने देश मे वे जनाधार लगातार खो रहे हैं।