कश्मीर का सीमा-सम्बन्धी विवाद हमेशा से ही भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का केंद्र रहा है। इस मुद्दे को अलग-अलग समय पर पाकिस्तान फर्जी दावों के साथ संयुक्त राष्ट्र के मंच पर उठा चुका है। वैश्विक रूप से अलग- थलग पड़ने के कारण पिछले कुछ समय से पाकिस्तान ने तुर्की के रास्ते इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र महासभा में उठाने की जुगत लगा रखी थी।
Turkiye President Erdogan hopes for "permanent peace" in Kashmir as he hyphenates India Pakistan during his UNGA address. https://t.co/ou26Rf0Yui pic.twitter.com/GWd4m93RAw
— Sidhant Sibal (@sidhant) September 20, 2022
अब तुर्की भी इस मुद्दे को निष्पक्षता से उठाने के मूड में दिख रहा है, इससे पहले तुर्की के स्वर पाकिस्तान के पक्ष में हुआ करते थे। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र महासभा का सम्मलेन न्यू यॉर्क में जारी है, इसमें बोलते हुए तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआँ ने कहा कि हम कश्मीर में स्थायी शान्ति चाहते हैं।
पहले अलग रहे हैं एर्दोआँ के सुर
वर्तमान में कश्मीर में स्थायी शांति की बात करने वाले एर्दोआँ के सुर कश्मीर मुद्दे पहले काफी अलग रहे हैं। समय के साथ उनके बयानों में भारत विरोधी सुर में कमी आती दिखाई दे रही है।
इससे पहले भी एर्दोआँ संयुक्त राष्ट्र महासभा के अपने भाषणों में कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे हैं। उन्होंने पहले 2019 में महासभा में भारत विरोधी बयान दिया था। उस समय उन्होंने कश्मीर के निवासियों का बंदिश में होना बताया था। तब पाकिस्तान की इमरान खान की सरकार लगातार तुर्की को बरगलाने में व्यस्त थी।

चित्र साभार: DAWN
इसके अगले साल 2020 में एर्दोआँ ने कश्मीर को ज्वलंत मुद्दा बताते हुए धारा 370 हटाने को विवाद को और गंभीर बनाने वाला बताया था। इसके पीछे भी पाकिस्तान का षड्यंत्र माना गया था। वहीं 2021 में एर्दोआँ ने कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र के जरिए सुलझाने की बात की थी।
इस वर्ष एर्दोआँ ने अपने बयान में कहा, “भारत और पाकिस्तान को संप्रभुता और स्वतंत्रता स्थापित किए हुए 75 साल हो चुके हैं, अभी भी दोनों राष्ट्र आपस में शान्ति और सहयोग की स्थापना नहीं कर पाए हैं, यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। हम यह आशा करते हैं कि कश्मीर में स्थायी तौर से शान्ति स्थापित हो।”
PM मोदी की मुलाकात का माना जा रहा असर
एर्दोआँ का यह बयान उनकी प्रधानमन्त्री मोदी के साथ हुई बैठक के कुछ ही दिनों के भीतर आया है। दोनों नेताओं के बीच उज्बेकिस्तान में SCO सम्मलेन के दौरान द्विपक्षीय वार्ता हुई थी। इसी से यह कयास लगे जा रहे हैं कि एर्दोआँ का कश्मीर के मुद्दे पर अपने सुर बदलना इस मुलाकात के कारण हुआ है।

इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने आपसी संबंधो, पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक क्षेत्र में भारत और तुर्की के बढ़ते सहयोग और अन्य वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की थी।
भारत ने तुर्की की दुखती रग पर रखा हाथ
एर्दोआँ के कश्मीर मुद्दे पर बयान देने के कुछ ही घंटों के भीतर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तुर्की के विदेश मंत्री मेवलूत कावुसोग्लू से मुलाकात की। इन दिनों जयशंकर 10 दिवसीय अमेरिकी यात्रा पर हैं जहाँ वह विभिन्न देशों के नेताओं से मिल रहे हैं।
Met FM @MevlutCavusoglu of Türkiye on sidelines of #UNGA.
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) September 21, 2022
Wide ranging conversation that covered the Ukraine conflict, food security, G20 processes, global order, NAM and Cyprus. pic.twitter.com/AsEYO22tKn
कावुसोग्लू से मिल कर जयशंकर ने साइप्रस, यूक्रेन में जारी युद्ध, खाद्य सुरक्षा और गुट निरपेक्षता जैसे मुद्दों पर चर्चा की। इसका उल्लेख उन्होंने अपने एक ट्वीट में किया। साइप्रस मुद्दे को उठाना इसमें काफी अहम माना जा रहा है।
साइप्रस का मुद्दा करीब 48 साल पुराना है, वर्ष 1974 में तुर्की ने साइप्रस पर हमला कर दिया था, साइप्रस में रहने वाले ईसाइयों को ग्रीस का समर्थन हासिल है।
साइप्रस का मुद्दा तुर्की के लिए काफी संवेदनशील है, ग्रीस और तुर्की के बीच कई बार इस मुद्दे को लेकर राजनयिक तौर से तनातनी हो चुकी है। साइप्रस विवाद के कारण दोनों देश लगातार सैन्य तैयारियों में जुटे रहते हैं। कुछ समय पहले ग्रीस ने इसी विवाद के चलते फ्रांस से राफेल विमान भी खरीदे थे।