प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 अक्टूबर, 2022 को गुजरात के गाँधीनगर में डिफेन्स एक्सपो, 2022 का शुभारंभ किया। वैसे तो देश में डिफेन्स एक्सपो की शुरुआत वर्ष 1998 से हुई थी लेकिन, मेड इन इंडिया यानी संपूर्ण स्वदेशी हथियारों के लिहाज से यह देश का पहला एक्सपो है।
एक्सपो में ‘3डी’ पर जोर दिया गया है यानी डीआरडीओ, डिजाइन और डेवलप्ड इकोस्फीयर। साथ ही, इस वर्ष इसकी थीम ‘पाथ टू प्राइड’ रखी गई है। आत्मनिर्भर भारत की बात करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ये भारत के डिफेन्स क्षेत्र में किए गए कार्यों का प्रदर्शन है। आज हम सशक्त, समृद्ध और सुरक्षित भारत के निर्माण की ओर एक साथ कदम बढ़ा रहे हैं।
Speaking at ‘Invest For Defence’ Seminar in Gandhinagar.
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) October 20, 2022
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एक्सपो का उद्देश्य ‘मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड’ है। इसमें स्वदेशी स्तर पर बने डिजाइन, विकसित हथियार, प्रोटोटाइप, थल, नौ, एयर और आंतरिक सुरक्षा प्रणालियों का प्रदर्शन किया जाएगा। डिफेन्स एक्सपो 2022 अब तक का सबसे बड़ा एक्सपो है, जिसमें रिकॉर्ड 1,340 कंपनियाँ भाग ले रही हैं।
आत्मनिर्भरता की नई तस्वीर पेश करने के लिए इस बार इसमें सिर्फ भारतीय कंपनियों को ही शामिल किया गया है। साथ ही, एक्सपो में 75 देश शामिल हो रहे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दूसरे इंडिया-अफ्रीका डिफेंस डायलॉग (IADD) की मेजबानी भी की, जिसमें कई अफ्रीकी देशों के रक्षा मंत्रियों ने भाग लिया था।
डिफेन्स एक्सपो का शुभारंभ करते हुए पीएम मोदी ने भारत-पाक सीमा के पास डीसा में एक नए मिलिट्री एयरबेस की आधारशिला भी रखी। इस दौरान उन्होंने कहा कि मेक इन इंडिया आज रक्षा क्षेत्र में सफलता की नई कहानी लिख रहा है।
PM @narendramodi inaugurates #DefExpo22 at Mahatma Mandir Convention & Exhibition Centre in Gandhinagar, Gujarat
— PIB India (@PIB_India) October 19, 2022
Details: https://t.co/KRaxnMea1q
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रक्षा क्षेत्र में देश ने बीते वर्षों में अभूतपूर्व काम किया है। आँकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 5 वर्षों में देश का रक्षा निर्यात 8 गुना बढ़ा है। 2021-22 में भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट करीब 13,000 करोड़ रुपए का रहा। इसे आने वाले समय में 40,000 करोड़ रुपए तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है।
पीएम मोदी ने डिफेन्स एक्सपो को भारत के प्रति वैश्विक विश्वास का प्रतीक बताया है। बहरहाल, देश ने पिछले वर्षों में रक्षा क्षेत्र में जो नए आयाम स्थापित किए उसे देखते हुए यह गलत नहीं है। आज विश्व के कई देश रक्षा उपकरणों के लिए भारत की ओर देख रहे हैं।
स्वदेशीकरण को अपनाते हुए 2018 में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश में दो रक्षा गलियारों की स्थापना को साकार किया था। साथ ही, उत्तर प्रदेश में स्थापित गलियारे में रक्षा विनिर्माण में यूपी की ही MSME (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग) कंपनियों को प्राथमिकता दी गई, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार में भी बढ़ोतरी हो सके।
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का सबसे बड़ा उदाहरण ब्रह्मोस मिसाइल है, जिसे भारत ने रूस के साथ मिलकर बनाया है। यह दुनियाँ की सबसे तेज और सबसे घातक क्रूज मिसाइल है। इस मिसाइल के लिए फिलिपींस ने भारत के साथ 375 मिलियन डॉलर का पहला रक्षा सौदा भी किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2025 तक रक्षा उत्पादों का 5 बिलियन डॉलर के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है।
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर देश ने विलंब से कदम बढ़ाकर भी बीते 5 वर्षों में प्रौद्योगिकी के हंस्तातरण के साथ 200 से अधिक 4 ट्रिलियन रुपए के रक्षा अधिग्रहण प्रस्तावों को मंजूरी दी है। यह पहली बार है जब सरकार स्वयं पर आयात करने के लिए प्रतिबंध लगा रही है। दरअसल, आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत रक्षा मंत्रालय ने करीब 107 हथियारों की सूची बनाई है, जिनका निर्माण देश में ही किया जाएगा है।
हाल ही में देश को संपूर्ण स्वदेशी डिजाइन और निर्मित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत मिला जो आत्मनिर्भर भारत की पहल में मील का पत्थर साबित होगा। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए केंद्र सरकार विकास सह उत्पादन भागीदारी पहल, डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज, सृजन पोर्टल, रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (iDEX), रक्षा खरीद नीति और प्रोजेक्ट 75- इंडिया चलाया जा रहा है। साथ ही, रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 49% से बढ़ाकर 75% कर दिया गया है।
रक्षा क्षेत्र में तय किए गए लक्ष्यों को पाने के लिए रक्षा मंत्रालय, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और सेवा मुख्यालय उद्योग को संभालने की दिशा में काम कर रहे हैं। देश आज स्टार्ट-अप के क्षेत्र में दुनिया का सबसे बड़ा हब है।
साथ ही, केंद्र सरकार ने निजी क्षेत्र पर भी रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (DPSU) को विशेषाधिकार देने का प्रावधान रखा है। ऐसे में इनोवेशन की नई राह खुलेगी, युवा वर्ग भी इससे जुड़ पाएगा। स्वदेशी उपकरणों के निर्माण से ना सिर्फ रोजगार में बढ़ोतरी होगी बल्कि लागत में कमी आने से देश वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में शामिल हो सकेगा।
आत्मनिर्भरता का सीधा सा अर्थ है आप अपनी आवश्यकताओं को स्वयं पूरा कर सकते हैं और इसके बाद दूसरों की मदद भी कर सकते हैं। देश ने इस दिशा की ओर कदम बढ़ाना तो शुरू कर दिया है। हालाँकि, विकसित देश, अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय विशेषज्ञ हथियारों के मामले में भारत की आत्मनिर्भरता को फिलहाल गंभीरता से नहीं लेते।
कई भारतीय विशेषज्ञ समय-समय पर यह कहते/लिखते रहते हैं कि हथियारों के मामले में भारत की आत्मनिर्भरता का प्रयास महत्वाकांक्षी है और निकट भविष्य में संभव नहीं है, लेकिन भारत ने जिस तरह से ब्रह्मोस, तेजस, एयरक्राफ़्ट कैरियर और प्रचंड हेलिकॉप्टर में तकनीक की उत्कृष्टता दिखाई है, उससे हथियारों के मामले में आत्मनिर्भरता की राह में देश का भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है।