कॉन्ग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के बीच राजस्थान में कॉन्ग्रेस तोड़ो यात्रा का आगाज हो गया है। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बनने का सपना देख रहे गहलोत ने अपने ही हाईकमान के खिलाफ ‘जादू’ कर दिया है। राजस्थान की राजनीति में पड़ी दरार का असली मामला यह है कि अशोक गहलोत सचिन पायलट को मुख्यमंत्री के पद पर नहीं देखना चाहते।
इस से पहले कि पार्टी में सचिन पायलट की स्थिति को लेकर कोई ऐलान होता, उससे पहले ही राजस्थान में बगावत हो गई और अशोक गहलोत खेमे के करीब 90 विधायकों ने उनके समर्थन में इस्तीफा दे दिया। बताया जा रहा है कि कॉन्ग्रेस हाईकमान गहलोत की इस हरकत से नाराज़ है।

पूरा मामला कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष पद पर गहलोत की दावेदारी पक्की होने के बाद खाली होने जा रहे राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद से जुड़ा हुआ है। गहलोत के जल्द ही कॉन्ग्रेस प्रमुख बनने की अटकलों के बीच यह माना जा रहा था कि अरसे से अपने लिए मुख्यमंत्री पद की आशा कर रहे सचिन पायलट का सपना पूरा हो जाएगा।
इस बीच 25 सितम्बर को जयपुर में हुई राजनीतिक उठापटक ने सभी परिस्थितियों को 180 डिग्री मोड़ कर रख दिया है।
क्या है पूरा मामला?
कुछ दिनों पहले घोषित हुए कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के बाद यह तय माना जा रहा था कि गांधी परिवार के आशीर्वाद और पार्टी में मजबूत पकड़ के चलते राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाएगा। इसी के चलते यह चर्चा भी तेज हुई कि यदि गहलोत कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष बनते हैं तो राजस्थान में मुख्यमंत्री कौन बनेगा।
गहलोत यह चाहते हैं कि उनके पास मुख्यमंत्री और अध्यक्ष, दोनों का पद रहे, पर इसमें बाधा तब आई जब राहुल गाँधी ने पार्टी में ‘एक आदमी-एक पद’ की बात साफ कर दी। उनके यह कहने के बाद साफ हो गया कि यदि गहलोत अध्यक्ष बनते हैं तो उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडनी पड़ेगी।
अब तो राहुल गांधी ने भी साफ कर दिया है कि उदयपुर में जो एक,व्यक्ति, एक पद का प्रस्ताव पारित किया गया था। मुझे उम्मीद है कि पार्टी उस पर क़ायम रहेगी।
— Aadesh Rawal (@AadeshRawal) September 22, 2022
लम्बे समय से मुख्यमंत्री की कुर्सी की आस में बैठे पायलट के लिए इससे अच्छा मौका और कोई नहीं हो सकता था। पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व (सोनिया, राहुल और प्रियंका) भी पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की बात कह चुके थे। ऐसे में पायलट का राजस्थान का मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा था।
इस पर फैसला करने के लिए केन्द्रीय नेतृत्व ने दिल्ली से दो पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को राजस्थान भेजा और यह कहा कि विधायक दल की बैठक में इस बात पर एक लाइन का प्रस्ताव पास करा लें कि सभी विधायक राजस्थान का मुख्यमंत्री चुनने का फैसला सोनिया गांधी के ऊपर छोड़ते हैं।
कल शाम रविवार को 7 बजे मलिका अर्जुन खरगें और अजय माकन राजस्थान के “पायलट” का निर्णय करेंगे।
— Aadesh Rawal (@AadeshRawal) September 24, 2022
इस काम के लिए 25 सितम्बर को शाम 7 बजे विधायकों की बैठक बुलाई गई थी। लेकिन बैठक के चालू होने से पहले ही बड़ा सियासी संकट खड़ा हो गया। अशोक गहलोत के करीबी मंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी आदि ने गहलोत गुट के विधायकों को मीटिंग में जाने के बजाय शांति धारीवाल के घर पर पहुँचने को कहा, जहाँ से निकलने के बाद विधायकों ने अलग सुर अपना लिए।
गहलोत ने फंसाया पेंच
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की लड़ाई अब किसी से छुपी नहीं है। गहलोत किसी भी कीमत पर पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री नहीं बनने देना चाहते हैं। उनकी मांग है कि या तो उन्हें अध्यक्ष के साथ-साथ मुख्यमंत्री बने रहना दिया जाए, या फिर उनके किसी वफादार को मुख्यमंत्री पद पर बिठाया जाए जिसमें राजस्थान की विधानसभा के स्पीकर सी पी जोशी पहली पसंद हैं।
Pratap Singh Khachariyawas, Cabinet minister for Transport and Soldier Welfare, says party should listen to the majority, reports @parul_kuls @TheNewIndian_in #news #RajasthanCM #rajasthan pic.twitter.com/ITjvFULoqH
— The New Indian (@TheNewIndian_in) September 25, 2022
इसी प्रतिद्वंदिता के चलते यह पूरी सियासी उठापटक देखने को मिली है। गहलोत ने अपने विधायकों के गुट को कहा है कि वह ऐसी मांग करें कि पार्टी का हाई कमान चाह कर भी पायलट को मुख्यमंत्री ना बना सके। इसी के चलते कल गहलोत गुट विधायक जब शांति धारीवाल के घर से निकले तो वह मांग करने लगे कि गहलोत को मुख्यमंत्री पद से ना हटाया जाए और अगर हटाया जाए तो उनमें से किसी एक को मुख्यमंत्री बनाया जाए।
उन्होंने स्पीकर को गहलोत के मुख्यमंत्री बने रहने के समर्थन में अपना इस्तीफा भी सौंपा। उधर कॉन्ग्रेस के दोनों गुटों के समर्थक सड़क पर एक दूसरे के आमने-सामने आकर प्रदर्शन करने लगे।
भारत जोड़ने की बात करने वाली कॉन्ग्रेस खुद टूट रही
दक्षिण के राज्यों में भारत जोड़ो यात्रा में मशगूल कॉन्ग्रेस खुद की ही पार्टी को एकजुट नहीं रख पा रही है, राजस्थान में हुआ यह राजनीतिक ड्रामा दर्शाता है कि पार्टी संगठनात्मक तौर पर कितनी कमजोर है। पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने जिन गहलोत पर अध्यक्ष बनाने के लिए भरोसा दिखाया उन्होंने ही सोनिया,राहुल के पायलट के मुख्यमंत्री बनाने के फैसले के खिलाफ तिकड़मबाजी कर दी।
ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि कुछ दिनों में पार्टी के अध्यक्ष पद पर बैठने जा रहे व्यक्ति का मुख्यमंत्री की कुर्सी के प्रति इतना मोह है और वह अंदरूनी लड़ाई में इतना व्यस्त है तो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का क्या भला कर पाएगा।
कांग्रेस आलाकमान राजस्थान की घटना से बेहद ख़फ़ा है।
— Aadesh Rawal (@AadeshRawal) September 25, 2022
पायलट के खिलाफ अशोक गहलोत की इस राजनीतिक चाल ने जहाँ एक ओर पार्टी हाईकमान को पशोपेश में डाल दिया है वहीं युवा सचिन पायलट की उम्मीदों पर फिर पानी फिरता नजर आ रहा है।
कॉन्ग्रेस पार्टी के अन्दर युवा नेतृत्व को अस्वीकार करने की यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले मध्य प्रदेश के अन्दर ज्योतिरादित्य सिंधिया इन्हीं कारणों के चलते पार्टी छोड़ कर भाजपा में जा चुके हैं।
वहीं, राजस्थान में विधायकों की इस आपसी फूट ने पार्टी में अनुशासनहीनता को फिर से उजागर कर दिया है और इस प्रश्न को और गहरा कर दिया है कि जब पार्टी खुद ही एक जुट नहीं है तो वह भारत जोड़ो यात्रा जैसे राजनीतिक अभियान चलाकर क्या साबित करना चाह रही है।