उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चार दिवसीय राष्ट्रीय बैठक में संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने देश में जनसांख्यिकी परिवर्तन पर चिंता जताई। होसबोले ने देश में परिवार के सदस्यों की घटती औसत संख्या, मतांतरण, जनसंख्या विस्फोट एवं अवैध घुसपैठ आदि की समस्या पर भी बात की।
देश में सब पर लागू होने वाली जनसंख्या नीति बननी चाहिए – दत्तात्रेय होसबाले जीhttps://t.co/leAXtpYwM5
— RSS (@RSSorg) October 19, 2022
इससे पहले इसी महीने में नागपुर में विजयादशमी के अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी लगभग इन्हीं विषयों पर चिंता जताते हुए कहा था कि ये ऐसी समस्याएँ हैं, जिनसे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता।
संघ का निरंतर इन विषयों को मुख्यधारा में लाना जनसांख्यिकी में निरंतर परिवर्तन की बहस को बढ़ावा देने की ओर दिख रहा है। इन बयानों के विषय में पूर्व में हुए सर्वे और समाचार कुछ ऐसी ही जानकारियाँ सामने रखते हैं।
संघ पदाधिकारी ही नहीं, वाम दल और ममता बनर्जी तक जता चुके हैं चिंता
संघ लगातार जनसांख्यिकी के विषय पर मुखर रहा है। वर्तमान में लगातार आते वक्तव्य भी इसी तरफ ही संकेत देते हैं, लेकिन ऐसा नहीं कि संघ ही केवल इस विषय को उठाता रहा है। लगातार बढ़ती अवैध घुसपैठ के कारण देश में बदलती जनसांख्यिकी एवं महिलाओं के धर्मांतरण से आए बदलाव को इससे पूर्व भी कई नेता उठा चुके हैं।
इसका सबसे ज्वलंत उदहारण बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं। वर्ष 2005 में ममता संसद सदस्य के तौर पर न केवल संसद में मुखर थीं बल्कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के विषय पर संसद की सदस्यता से त्यागपत्र भी दे दिया था। ममता बनर्जी ने ऐसा इस विषय पर संसद में बोलने न दिए जाने के कारण किया था।
बांग्लादेश से आने वाले अवैध घुसपैठियों से लगातार प्रभावित होने वाले राज्य पश्चिम बंगाल के वर्ष 2003 में मुख्यमंत्री रहे बुद्धदेब भट्टाचार्य ने भी तत्कालीन उपप्रधानमन्त्री लालकृष्ण आडवाणी से मिलकर पश्चिम बंगाल में बढ़ते बांग्लादेशी घुसपैठियों और उनके द्वारा उत्पन्न होने वाले खतरों को लेकर चिंता व्यक्त की थी। कहते हैं इस विषय पर तत्कालीन मुख्यमंत्री भट्टाचार्य और तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी एक ही पन्ने पर थे।
वाम दलों की तरफ से केरल के मुख्यमंत्री रहे वीएस अच्युतानंदन ने भी वर्ष 2010 में देश में हाल में ही प्रतिबंधित किए गए संगठन PFI पर पैसे और दूसरे धर्म की महिलाओं से शादी करके एवं उनसे संतति पैदा करके राज्य में मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ाने का आरोप लगाया था।
इसी वर्ष सितम्बर माह में गृहमंत्री अमित शाह ने भी सीमावर्ती क्षेत्रों में तेजी से बदलती जनसांख्यिकी पर चिंता व्यक्त करते हुए सुरक्षा बलों को सचेत रहने की बात कही थी।
वक्तव्यों से अलग, आँकड़ों पर कहाँ तक खरा है होसबोले का दावा?
होसबोले के वक्तव्य का मुख्य बिंदु जनसंख्या असंतुलन, घुसपैठ और मतांतरण था। आँकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो बांग्लादेश से सीमा साझा करने वाले पूर्वोत्तर के प्रदेशों असम, त्रिपुरा आदि में धार्मिक आधार पर जनसंख्या में तेजी से बदलाव हुआ है। बंगाल में तो यह समस्या लगातार 1971 के बाद से ही बनी हुई है।
‘सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज’ नाम की एक संस्था की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 से वर्ष 2011 के बीच असम राज्य में मुस्लिम जनसंख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2001-11 के बीच जहाँ हिन्दू जनसंख्या की वृद्धि दर लगभग 10% रही वहीं मुस्लिम जनसंख्या में यह वृद्धि दर 30% रही।
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2001-11 के बीच राज्य की जनसंख्या में कुल 45.5 लाख लोग नए जुड़े, इनमें 24 लाख से अधिक मुस्लिम थे और 18 लाख हिन्दू। अर्थात एक दशक में बहुसंख्यक रहे हिन्दुओं से अधिक वृद्धि मुस्लिमों में हुई।
रिपोर्ट के अनुसार, असम के 27 जनपदों में से 9 जनपद ऐसे हैं जिनमें मुस्लिम जनसंख्या बहुसंख्यक हो चुकी है। धुबरी, गोलपाड़ा, बोगाईगाँव और बारपेटा तथा नलबाड़ी आदि इसके कुछ उदहारण हैं।
धुबरी की कुल 19.5 लाख जनसंख्या में से लगभग 80% जनंसख्या मुस्लिम है। वहीं, गोलपाड़ा, बोगोइगाँव और मोरीगाँव तथा नौगाँव जैसे जिलों में भी यह आँकड़ा 50% के पार ही है। लगातार बढ़ते इस जनसंख्या असंतुलन के कारण असम में आपसी संघर्ष के मामले सामने आए हैं।
वहीं बंगाल के विषय में इसी संस्था की एक रिपोर्ट बताती है कि मालदा, मुर्शिदाबाद, दिनाजपुर जैसे जिलों में जहाँ बांग्लादेश की सीमा निकट है , लगातार 1951 के बाद से मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1951 में मालदा में मुस्लिम जनसंख्या लगभग 37% थी जो वर्ष 2011 आते आते 51.27% हो चुकी है। इसका अर्थ है कि अब जिले में मुस्लिम जनसँख्या बहुसंख्यक हो चुके हैं।
समचार पत्र ‘इकॉनमिक टाइम्स’ में 2004 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, तत्कालीन गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल द्वारा दिए गए वक्तव्य के अनुसार, देश के अंदर 1.2 करोड़ से अधिक अवैध बांग्लादेशी प्रवासी रह रहे थे।
वहीं, वर्ष 2016 में राज्य सभा को दिए गए एक उत्तर में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने बताया था कि देश में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या 2 करोड़ है। ऐसे में होसबोले का यह कहना कि देश में जनसांख्यिकी में परिवर्तन हो रहा है, सच्चाई के निकट दिखाई पड़ता है।
ऐसा नहीं कि जनसांख्यिकी में यह परिवर्तन केवल घुसपैठ का परिणाम है। पिछले कई दशकों से देश में हिंदुओं और जनजातियों को ईसाई धर्म में परिवर्तन के लिए बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं। पिछले कई वर्षों से पंजाब में धर्म परिवर्तन के मामले तेजी से बढ़े हैं। दक्षिण के राज्यों जैसे केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार का असर इन राज्यों की सामाजिक व्यवस्था पर साफ़ दिखाई देता है।
देश की औसत आयु बढ़ रही, परिवार हो रहे छोटे
वर्तमान में भारत की औसत आयु 28.4 वर्ष है, जिसका अर्थ है कि भारत एक युवा देश है। होसबोले ने अपने बयान में भारत के अंदर परिवारों के छोटे होने के कारण आने वाले समय में देश की औसत आयु के वृद्धावस्था में जाने की भी चिंता जाहिर की।
कैसे सुधरे सकते हैं हालात
ऐसा नहीं कि यह केवल आज महसूस हो रहा है कि देश में तेजी से बढ़ रहे धर्म परिवर्तन और घुसपैठ पर तुरंत कुछ किया जाना चाहिए। ये समस्याएँ और उनसे होने वाले परिणाम का भान समाज और प्रशासन को पहले से हैं। इस पर समय-समय पर बहस भी होती रही है, लेकिन इसे रोकने के प्रयासों को लेकर विभिन्न भागीदार अक्सर एकमत नहीं दिखाई देते।
कुछ राज्यों में धर्म परिवर्तन को लेकर क़ानून तो बनाए गए लेकिन उन्हें लागू करने को लेकर या तो ढिलाई है या फिर भ्रम की स्थिति! राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता की कमी साफ दिखाई देती है। ऐसे में यह आवश्यक है कि प्रयास केवल बहस तक न रुकें और एक वृहद् कार्य योजना बनाई जाए ताकि दीर्घकालीन तौर अपेक्षित परिणाम नज़र आ सकें।