“भज मन राधे..राधे गोविंदा”
यह भजन आपने कभी न कभी अवश्य सुना होगा। हो सकता है सोशल मीडिया पर भी एक विदेशी महिला को गाते सुना होगा। महिला का नाम अच्युत गोपी है। गोपी का जन्म न्यूयॉर्क, अमेरिका में भले ही हुआ है पर उनका मन कृष्ण भक्ति में ही रमता है।
ऐसे भजन गाने वाली गोपी अकेली विदेशी नहीं हैं। गोपी की तरह अनेक विदेशी महिलाएं और पुरुष हैं जो भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के अनुयायी हैं।
#Diwali 2022: Russian artists steal the show as they perform ‘#Ramleela’ in #Ayodhya | 📣 Catch the day's latest news and updates ➜ https://t.co/VIbEUCVC7v pic.twitter.com/lOA5VbGcx8
— Economic Times (@EconomicTimes) October 23, 2022
यह मात्र एक उदाहरण है हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक पुनरुत्थान का, और यह मात्र कृष्ण भक्ति तक सीमित नहीं है। यह कई रूपों में सामने आता है। ऐसा ही एक रूप 23 अक्टूबर को अयोध्या में होने वाली रामलीला में दिखाई दिया।
दरअसल, भगवान राम की नगरी अयोध्या में दीपावली के अवसर पर दीपोत्सव के दौरान रूस के एक समूह द्वारा रामलीला का मंचन किया गया, जिसमें मॉस्को के 12 कलाकार शामिल हुए।
It's my first time in India. I played Sita. We practiced for 3-4 months: Russian Actress
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) October 22, 2022
12 artists came from Moscow to perform here. Language wasn't a difficulty;making artists feel their characters was difficult: Dr Rameshwar, Founder of Russian group that performed Ramleela pic.twitter.com/WX1kvMyddn
भारत-रूस मैत्री संघ ‘दिशा’ के द्वारा पद्मश्री गेनादी पेचनिकोव मेमोरियल रामलीला का आयोजक था। रामलीला के निर्माता-निर्देशक डॉ रामेश्वर सिंह है, जिनके अनुसार 1960 से ही रामलीला समूह अलग-अलग देशों में मंचन करता आ रहा है।
यह मात्र अभिनय और कला का विषय नहीं है। कलाकारों के अनुसार वे इससे जुड़े हैं क्योंकि श्रीराम में उनकी आस्था है। इस समूह के सदस्य श्री राम के आदर्शों के आधार पर जीवन यापन करते हैं और उनके जीवन से ही प्रेरणा लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
कलाकारों की बात करें तो रामलीला में भगवान राम की भूमिका इलदार खुसनुललीन निभा रहे हैं। माँ सीता की भूमिका में मिलाना बयचोनेक, लक्ष्मण की भूमिका में एलेक्सी फ्लेयजनिकाव और वयचीसलाव चेरन्यास रावण की भूमिका में दिखे। इनके अलावा अन्य सभी मुख्य पात्रों के लिए 12 कलाकारों की टीम शामिल है।
रामलीला का मंचन करने वाला यह रूसी समूह यूरोपीय देशों सहित विश्व के कई अन्य हिस्सों में अपनी प्रस्तुति दे चुका है। रामलीला के इस मंचन में सीता स्वयंवर, राम का अयोध्या में स्वागत, कैकयी का वर मांगना, राम-लक्ष्मण व माँ सीता का वन गमन, सीता हरण, राम-हनुमान भेंट, लंका में सीता तथा कई अन्य दृश्यों का मंचन किया जाता है।
अयोध्या में योगी सरकार द्वारा इस समूह के लिए उचित प्रबंध किया गया है। समूह ने अयोध्या में रामलीला का मंचन पहली बार 2018 में किया था। अयोध्या दीपोत्सव में उन्हें पहली बार प्रस्तुति देने का मौका मिला था। 2019 में भी प्रयागराज में हुए कुंभ में उन्हें मंचन करने का अवसर प्राप्त हुआ था।
2017 से योगी सरकार द्वारा दीपोत्सव का शुभारंभ किया गया था और तब से प्रतिवर्ष विदेशी कलाकार यहाँ प्रस्तुति देते आ रहे हैं। इस वर्ष भी 8 देशों के कलाकार अयोध्या में रामलीला करेंगे। इनमें रूस, श्रीलंका, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, फिजी, नेपाल, त्रिनिदाद और टोबैगो के कलाकार शामिल हैं।
भारतीय संस्कृति की झलक इन देशों में मात्र रामलीला में ही नहीं बल्कि कई और रूपों में भी दिखाई देती है। भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में एक पर्वत है जो श्रीपद चोटी के नाम से जाना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यहाँ भगवान शिव के पैरों के निशान स्थित है।
थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रंथ रामायण है तो राष्ट्रीय चिन्ह गरुड़। यहाँ के राजा को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और यहाँ की राजधानी में सबसे बड़े हॉल का नाम है ‘रामायण हॉल’। बैंकॉक से ही 60 किमी की दूरी पर अयोध्या है, जहाँ पर श्री राम की विशेष पूजा होती है।
इंडोनेशिया में भी रामायण का प्रभाव देखने को मिलता है। यहाँ होने वाली रामलीला विश्व प्रसिद्ध है। मुस्लिम बहुल देश में रामायण में गहरी आस्था रखने वाले लोग हैं। देश के कई हिस्सों में रामायण के अवशेष एवं रामकथा की नक्काशी वाले पत्थर हैं।
इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में अनेक स्थानों पर हिंदू स्थापत्य कला आसानी से देखी जा सकती है। यहाँ 5 भव्य मंदिर स्थित है जहाँ भगवान राम सहित कई देवताओं की मूर्तियां हैं। यहाँ तक की यहाँ की मुद्रा पर भगवान गणेश अंकित है।
दुनियाँ के 50 से अधिक देशों में हिंदू निवास करते हैं। दिवाली जो मुख्यतः भारतीय त्योहार है, मलेशिया, फिजी, सिंगापुर और नेपाल सहित कई देशों में मनाया जाता है। बाली में जहाँ दिवाली के पटाखे जलाए जाते हैं, वहीं फिजी, मॉरिशस और मलेशिया में इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है।
श्रीलंका में भारत की तरह ही दिवाली का त्योहार 5 दिनों तक चलता है, जिसमें दीपदान, आतिशबाजी से लेकर मिठाइयों का आनंद लिया जाता है। अमेरिका और यूरोपियन देशों में बसे भारतीय वहाँ भी धूम-धाम से दिवाली मनाते हैं।
तो क्या आप अब भी सवाल उठेगा दिवाली के ‘आउट-डेटेड’ और हेलोवीन के ‘इन’ होने का?