आल्ट न्यूज (AltNews) के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद जुबैर को 2022 के नोबेल शान्ति पुरस्कार के लिए नामित होने की खबरें अमेरिका की टाइम मैगजीन के हवाले से आज भारतीय मीडिया में धड़ल्ले से चल रही है।
सोशल मीडिया पर भी तथाकथित फैक्टचेकर प्रतीक और जुबैर को उनके शुभचिन्तक बधाइयाँ देते थक नहीं रहे हैं। हालाँकि, नोबेल के लिए नामित होने की खबर कितनी सच्ची है, इसका फैक्ट चेक न तो आल्ट न्यूज ने किया और न ही, भारत की तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया ने। इनके शुभचिन्तक तो अभी शुभकामना बाँट रहे हैं, पड़ताल करना तो दूर की बात है।
नोबेल मिलने का सच जानने से पहले पूरा घटनाक्रम जान लेते हैं। दरअसल, टाइम मैगजीन की वेबसाइट पर बीते मंगलवार (अक्टूबर 04, 2022) को एक लेख प्रकाशित हुआ। इसकी लेखिका सान्या मनसूर हैं। लेख का शीर्षक है, “Here Are the Favorites To Win the 2022 Nobel Peace Prize” यानी, हिन्दी में कहें तो ‘2022 के नोबेल शान्ति पुरस्कार के लिए पसंदीदा लोगों की सूची यहाँ है।’

इस आर्टिकल में बताया गया है कि नॉर्वेजियन सांसदों के माध्यम से सार्वजनिक किए गए नामांकन , बुकमेकर की भविष्यवाणी और पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ओस्लो से चुनी गई सूची के आधार पर कई नामों को नोबेल शान्ति पुरस्कार के लिए पसन्द किया गया है, जो नोबेल जीत सकते हैं।
नामों की इस सूची में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की, डब्ल्यूएचओ, डेविड एटनबरो, ग्रेटा थुनबर्ग, एलेक्सी नवलनी सहित आल्ट न्यूज के सह-संस्थापक और तथाकथित फैक्टचेकर प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद जुबैर का भी नाम शामिल है।
सान्या मनसूर अपने आर्टिकल में लिखती हैं, “भारतीय फैक्ट-चेक वेबसाइट आल्ट न्यूज के सह-संस्थापक और पत्रकार प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद जुबैर भारत में गलत सूचनाओं से लगातार जूझ रहे हैं। जहाँ हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा पर मुस्लिमों के खिलाफ अक्सर भेदभाव के आरोप लगाए जाते हैं। यह एक तरह से भारत को बदनाम करने की भी कोशिश है। सिन्हा और जुबैर ने सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों और फर्जी खबरों को व्यवस्थित रूप से खारिज किया है और हेट स्पीच को रोकने का आह्वान किया है।”

भारत का वाम मीडिया
वैसे, आपको बता दें कि तथाकथित फैक्ट-चेकर मोहम्मद जुबैर एंड कंपनी फेक-न्यूज पेडलर हैं। इनका ताजातरीन कारनामा था, जब इन्होंने भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के ऑडियो क्लिप को गलत ढंग से काट कर पेश किया और इस्लामी कट्टरपंथियों की पूरी भीड़ उनके पीछे पड़ गई। जुबैर के तथ्यों को तोड़-मरोड़कर झूठ फैलाने की फेहरिश्त बहुत लम्बी है।
Rasode ka Factchecker @zoo_bear compared a news if PM Modi's Mann ki Baat to a news of Mexico using TV for teaching.
— Ankur Singh (@iAnkurSingh) September 6, 2020
India has been doing it from April.
After his lie got caught, he deleted the tweet.
Is if fighting fake narratives or Spreading it? pic.twitter.com/FlJngMChDn
तथाकथित फैक्टचेकर मोहम्मद जुबैर, भगवान ‘हनुमान को हनीमून’ बताने जैसे कुकृत्य के लिए जेल भी गए, अभी जमानत पर बाहर हैं। यह पहला मामला नहीं जब जुबैर ने माहौल बिगाड़ने का प्रयास किया हो, ऐसा कई बार देखा जा चुका है।

टाइम मैगजीन के इस आर्टिकल के बाद भारत का वाम-लिबरल, सेक्युलर मीडिया लहालोट होता थका नहीं। ‘दी वायर’ ने दोनों फैक्टचेकर की तारीफ में कशीदे काढ़ने शुरू कर दिए। भाजपा को कोसते हुए, मुसलमान पर अत्याचार का राग अलापते हुए ‘दी वायर’ थकता नहीं।

झूठ का पुलिन्दा और प्रोपैगैंडा फैलाने वाले ध्रुव राठी, प्रतीक और जुबैर के नोबेल की पसंदीदा सूची में आने से गौरवान्वित महसूस करने लगे। ध्रुव राठी दोनों को बधाई देते हुए कहते हैं, “हर सच्चा भारतीय गर्व महसूस करेगा। आल्ट न्यूज भारतीय लोकतंत्र को फासीवादी ताकतों से बचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ट्रोल्स पर ध्यान न दें और अपना काम जारी रखें।” यह वही ध्रुव राठी हैं, जिनका यू-ट्यूब चैनल हाल ही में बन्द होते-होते रह गया क्योंकि, इन साहब ने भारत की संप्रभुता के खिलाफ फेक न्यूज फैलाई थी। गनीमत रही कि इनका वह झूठा वीडियो ही यू-ट्यूब से हटा दिया गया।

तथाकथित फैक्टचेकर प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद जुबैर को हीरो बनाने में जब वामियों का पूरा इकोसिस्टम लगा हो, भला ऐसे में इनका सरगना एनडीटीवी पीछे कैसे रह सकता है।

सच क्या है?
सच्चाई बताने से पहले एक सवाल। क्या नोबेल शान्ति पुरस्कार की सूची में शामिल लोगों के नाम पहले ही सार्वजनिक किए जा सकते हैं? इस सवाल की पड़ताल करते हुए हमने नोबेल शान्ति पुरस्कार देने वाली संस्था की वेबसाइट को खंगाला। वेबसाइट पर हमने पाया कि यह तो सम्भव नहीं है।
नोबेल संस्था के नियम के मुताबिक ‘नोबेल शान्ति पुरस्कार के नामांकन होने के 50 साल बाद ही नामों को सार्वजनिक किया जाता है। इस साल भी नोबेल पुरस्कारों के नामांकन को गुप्त रखा गया है।’ संस्था के अनुसार, इस साल के नामांकित व्यक्तियों के बारे में अगर संस्था से बाहर कोई भी चर्चा होती है तो वह मात्र अफवाह है, झूठी खबर है। या फिर आमंत्रित नामांकनकर्ताओं में से किसी ने जानकारी लीक की है। हालाँकि, जानकारी लीक का मामला कभी भी नहीं हुआ है।

नोबेल संस्था के इस नियम का अर्थ यह हुआ कि टाइम मैगजीन की खबर सरासर अफवाह फैलाने वाली है, बेबुनियाद है। टाइम मैगजीन ने जिन सूत्रों के हवाले से खबर लिखी है, वो मनगढंत और झूठे हैं। टाइम मैगजीन ने नोबेल संस्था के किसी भी आधिकारिक सूत्र का उल्लेख नहीं किया है।
भारत के वाम लिबरल मीडिया ने भी टाइम मैगजीन की झूठी खबर को देशभर में खूब फैलाया। सोशल मीडिया पर देश को गौरवान्वित करने जैसे भारी-भरकम, भावुक शब्दों की बयार आ गई। वाम गिरोह सोशल मीडिया पर प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद जुबैर को बधाई देते थके नहीं। हालाँकि, अफवाह से भरे इस गुब्बारे को फूटने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगा।
सान्या मनसूर कौन है?
अब एक और सवाल उठता है कि टाइम मैगजीन में यह आर्टिकल लिखने वाली सान्या मनसूर ने यह झूठ क्यों फैलाया? भारतीय मूल की सान्या मनसूर जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हैं। सान्या मनसूर के ट्विटर को जब देखते हैं तो पता चलता है कि हिन्दूफोबिक सान्या भयानक रूप से सांप्रदायिक मानसिकता से ग्रसित हैं।

उदयपुर में 2 मुस्लिम युवकों द्वारा कन्हैया लाल की हत्या के बाद सान्या मनसूर ने टाइम मैगजीन में शातिराना तरीके से आर्टिकल लिखकर बताया था कि ‘हिन्दू लाइव्स मैटर’ का नारा भारत में एक खतरे के रूप में उभर रहा है। सान्या ने वैश्विक स्तर पर कन्हैया लाल के हत्यारों को कोसने की बजाय न्याय माँग रहे हिन्दुओं पर प्रश्नचिह्न लगाने का प्रयास किया।

इतना ही नहीं, सान्या मनसूर, आफरीन फातिमा के समर्थन में हमेशा मुखर रही हैं। ये वही आफरीन फातिमा हैं, जो 2019-20 के दिल्ली शाहीन बाग में सीएए/एनआरसी और हिजाब प्रतिबंध विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय भूमिका निभा रही थीं। इनके पिता जावेद, प्रयागराज में 10 जून, 2022 को हुई हिंसा के मुख्य आरोपी थे।

इसके अलावा, सान्या मनसूर, खुर्रम परवेज जैसे कट्टरपंथी के प्रति भी सहानुभूति रखती है, जिन्हें एनआईए ने आतंकी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया है। सान्या मनसूर ने हिन्दू विरोधी दिल्ली दंगों को राना अय्यूब के साथ मिलकर चालाकी से मुस्लिम विरोधी दंगों के रूप में चित्रित करने का कुत्सित प्रयास भी किया था।

टाइम मैगजीन की पत्रकार सान्या मनसूर के इन सभी प्रकरणों से पता चलता है कि वे वैश्विक स्तर पर भारत की छवि बिगाड़ने के लिए ग्लोबल मीडिया की कठपुतली के तौर पर कार्य कर रही हैं। इस बार भी नोबेल के बहाने, ‘हिन्दूवादी भाजपा’ (सान्या मनसूर के शब्द) को गरियाने के बहाने, एक बार फिर वैश्विक पटल पर भारत की छवि बिगाड़ने का कार्य कर रही हैं।