अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल (Wall Street Journal) ने अपने एक भारत-विरोधी विज्ञापन में भारत को ‘निवेश के लिए असुरक्षित स्थान’ बताते हुए दुष्प्रचार करने का प्रयास किया है। ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ अखबार के पहले पृष्ठ पर एक संगठन की तरफ से प्रकाशित इस विज्ञापन में देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण समेत 14 लोगों के नाम दिए गए हैं।

पहली नजर में यह विज्ञापन ‘मोस्ट वांटेड’ के विज्ञापन जैसा जान पड़ता है। अमेरिकी अख़बार के विज्ञापन में आरोप लगाया गया है कि ये लोग भारत की संवैधानिक संस्थाओं को राजनीतिक और औद्योगिक विरोधियों के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। विज्ञापन में निवेशकों से भारत से दूरी बनाकर रखने की अपील की गई है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल के विज्ञापन में भारत पर प्रतिबंध लगाने की मांग
इस आपत्तिजनक विज्ञापन में ‘ग्लोबल मगनित्स्की ह्यूमन राइट्स अकाउंटिबिलिटी एक्ट’ (Global Magnitsky Human Rights Accountability Act) के तहत अमेरिका से भारत पर आर्थिक और वीजा समबन्धी प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।
ज्ञात हो कि यह कानून अमेरिकी सरकार को अधिकार देता है कि वह किसी विदेशी अधिकारी या नेता की संपत्ति जब्त कर सके, और उन पर अपने देश में घुसने समेत अन्य प्रकार के प्रतिबंध लगा सके।
Shameful weaponisation of American media by fraudsters.
— Kanchan Gupta 🇮🇳 (@KanchanGupta) October 15, 2022
This shockingly vile ad targeting #India and its Government appeared in @WSJ .
Do you know who is behind this and similar ads?
This ad campaign is being run by fugitive Ramachandra Vishwanathan, who was the CEO of Devas.
n1 pic.twitter.com/o7EWFmMsSR
अमेरिकी दौरे पर हैं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण
यह विज्ञापन देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के अमेरिकी दौरे के दौरान सामने आया है। विज्ञापन में भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एन वेंकटरमन, सुप्रीम कोर्ट के जज हेमंत गुप्ता और वी रामसुब्रमण्यम पर प्रतिबंध लगाने की माँग की गई है।
इसके अलावा विशेष न्यायाधीश चंद्रशेखर, ईडी अधिकारी संजय कुमार मिश्रा, ईडी सहायक निदेशक आर राजेश, सीबीआई डीएसपी आशीष पारीक, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एन वेंकटरमण, और ईडी उप निदेशक ए सादिक मोहम्मद की तस्वीरें विज्ञापन में दी गई हैं।

अब तक भारतीय वित्तमंत्री या किसी भारतीय एजेंसी ने इस विज्ञापन पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। अब तक सामने आई जानकारी के अनुसार, यह विज्ञापन असंतुष्ट भारतीय व्यवसायी और देवास मल्टीमीडिया के पूर्व सीईओ रामचंद्रन विश्वनाथन गुट द्वारा छपवाया गया है। दिसंबर 2004 में निर्मित यह कंपनी, उपग्रह और स्थलीय प्रणालियों के माध्यम से मल्टीमीडिया सामग्री वितरित करने का एक मंच थी।
सुप्रीम कोर्ट ने देवास को कहा था ‘असुर‘
जनवरी 2022 में देवास मल्टीमीडिया को बंद करने के NCLT के फैसले को बरकरार रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि, “जो ‘देवास’ (देवताओं) के रूप में शुरू हुई, वह अंततः ‘असुर’ (राक्षस) निकली” – यही वह निर्णय था जिसकी कुंठा आज वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपे विज्ञापन के रूप में सामने आई है। कॉन्ग्रेस के अमेरिकी एजेंट्स, जिनका इस मामले से कोई लेना देना नहीं है, उन्होंने भारत की छवि खराब करने का यह नया तरीका ढूंढा है।
कॉन्ग्रेस सरकार ने नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए देवास को एस-बैंड स्पेक्ट्रम आवंटित किया था। यह सौदा बाद में रद्द हो गया, लेकिन यूपीए ने देवास द्वारा रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण एस-बैंड स्पेक्ट्रम के उपयोग को प्रतिबंधित नहीं किया।
पर मोदी सरकार ने इसे बैन कर दिया। फिर देवास ने कपटपूर्ण अनुबंधों का उपयोग करके मध्यस्थता जीती पर NCLT ने धोखाधड़ी के आरोप में देवास को बंद किया और इस फैसले को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा।
देवास मल्टीमीडिया विवाद की पूरी कहानी

जनवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने देवास मल्टीमीडिया को बंद करने के NCLT के फैसले को बरकरार रखा। यूपीए युग में हुए इस सौदे को सीबीआई ने अपनी जांच में धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का अड्डा पाया था, इसकी गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसकी तुलना ‘असुर’ (राक्षस) से की थी।
यूपीए के प्रथम कार्यकाल के दौरान 2005 में देवास ने, इसरो के एंट्रिक्स साथ एक अनुबंध किया जिसके तहत इसे 2 उपग्रहों का निर्माण, प्रक्षेपण और संचालन करना था और इसरो को 70 मेगाहर्ट्ज एस-बैंड स्पेक्ट्रम उपलब्ध कराना था, जिसके सैन्य उपयोग भी होते हैं। पर यह सौदा यूपीए-युग की एक बहुत बड़ी धोखाधड़ी साबित हुई, जिस कारण इसे 2011 में बंद कर दिया गया।
भारत को धोखा देने और कॉन्ग्रेस और उसके साथियों को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से यूपीए सरकार के दौरान तेल बांड, एनपीए के कारण बैंक संकट, रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स जैसे कई अन्य सौदों की तरह, देवास सौदा भी एक आत्मघाती बारूदी सुरंग जैसा था, और इस कारण देवास आज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत सरकार पर कीचड़ उछाल रहा है।
कॉन्ग्रेस सरकार के तहत बहुत बेकार और लचर अनुबंधों से लैस देवास ने भारत के खिलाफ कई मध्यस्थता कार्रवाइयाँ कीं। इसके चलते 13 अक्टूबर 2020 को भारत के खिलाफ 111.29 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 834.7 करोड़ रुपए) का जुर्माना (कॉन्ग्रेसी पुरस्कार) लगाया गया था।

इसी तरह इस साल 2022 की शुरुआत में, एक कनाडाई और फ्रांसीसी अदालत ने देवास मल्टीमीडिया को संबंधित देशों में भारत सरकार या उसकी संस्थाओं के स्वामित्व वाली संपत्तियों की जब्ती के माध्यम से बकाया वसूल करने की अनुमति दी थी।
इन भारत के प्रतिकूल मध्यस्थता निर्णयों के लिए पूरी तरह से यूपीए सरकार की ढिलाई जिम्मेदार है क्योंकि यूपीए सरकार ने 2011 में एंट्रिक्स की ओर से मध्यस्थ नियुक्त करने वाले मध्यस्थता पैनल का जवाब नहीं दिया था, जो बाद में विदेशी अदालतों में लड़े गए मामलों में देश के लिए हानिकारक साबित हुआ।
तत्कालीन यूपीए सरकार को एस-बैंड स्पेक्ट्रम के दुरुपयोग की संभावना का एहसास होने और सौदा रद्द होने के बावजूद, एस-बैंड स्पेक्ट्रम के उपयोग को प्रतिबंधित करने सम्बन्धी कानून बनाने में 2 साल का कीमती समय बर्बाद कर दिया गया।
इस सौदे पर यूपीए द्वारा एक ऐसी कंपनी के साथ अनुबंध किया गया, जिसे धोखे से और बिना किसी उचित सावधानी के शामिल किया गया था। बाद में केन्द्र में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद, एंट्रिक्स ने धोखाधड़ी के मामले में देवास के परिसमापन के लिए NCLT का रुख किया।
NCLT ने अपने ऑर्डर में कहा कि धोखाधड़ी के मकसद से देवास मल्टीमीडिया को एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन के तत्कालीन अधिकारियों की मिलीभगत और सांठगाँठ के कारण शामिल किया गया था। इसमें आगे कहा गया कि एंट्रिक्स के साथ देवास का समझौता “धोखाधड़ी, गलत बयानी और जबरदस्ती से किया गया था”, इसके साथ ही इसके परिसमापन का आदेश दे दिया गया।

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि, सुप्रीम कोर्ट ने देवास और उसके शेयरधारक ‘देवास एम्प्लोयीज मॉरीशस प्राइवेट लिमिटेड’ की अपील को खारिज करते हुए NCLT द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा। इस आदेश ने अंतरराष्ट्रीय अदालतों द्वारा देवास के पक्ष में दिए गए मध्यस्थता पुरस्कारों के खिलाफ भारत सरकार का पक्ष मजबूत किया।
यूपीए सरकार और कॉन्ग्रेस का देवास जैसी आत्मघाती बारूदी सुरंगें बनाने का इतिहास रहा है और ये सभी बारूदी सुरंगें भारत के विकास में रोड़ा बनी हुई हैं। यूपीए कार्यकाल के घोटाले और द्वेषपूर्ण मंशा से हुए फैसलों और अनुबंधों के दुष्परिणाम आज भी महसूस किए जा रहे हैं!
भारत के खिलाफ हुए इन फैसलों के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने अपना स्टैंड साफ किया था कि दूतावास प्रतिकूल आदेशों के बावजूद संपत्तियों का उपयोग जारी रख सकते हैं, क्योंकि भारत सरकार ने इन फैसलों को मान्यता नहीं दी है। देश संप्रभु प्रतिरक्षा को लागू करते हुए इन फैसलों को अपमानजनक प्रक्रिया घोषित करता है।
कॉन्ग्रेस के अनुसार लोकतंत्र खतरे में, तथ्य इसके बिलकुल विपरीत